अवस्थिति |
avasthiti |
27 |
- परम्परा के रूप में स्पष्ट।
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अविकसित सृष्टि |
aviksit srishti |
27 |
- पदार्थावस्था प्राणावस्था का संयुक्त प्रकाशन ही अविकसित सृष्टि है (रासायनिक भौतिक संसार)।
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अविद्या |
avidya |
27 |
- भ्रमात्मक दर्शन विचार शास्त्र परिकल्पना कार्य व्यवहार।
- जैसा जिसका रूप, गुण, स्वभाव, धर्म या स्थिति व गति है, उसको उसी प्रकार समझने की अक्षमता।
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अविभाज्य |
avibhajya |
28 |
- अलग-अलग न होना, साथ में होना-व्यापक वस्तु में जड़-चैतन्य प्रकृति संपृक्त है। चैतन्य इकाई में से कोई अंश अलग-विस्थापित-प्रस्थापित नहीं है। गठनपूर्णता सहज निरंतरता है। जीवन अमर है, व्यापक सत्ता है।
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अविरत |
avirat |
28 |
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अविदित |
avidit |
28 |
- विकासक्रम, विकास, जागृतिक्रम, जागृति सहअस्तित्व वैभव है इसके विपरीत क्रियाकलाप जो मानव ही भ्रमवश करता है यही अविदित है।
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अविश्वास |
avishvas |
28 |
- न्याय के प्रति संदिग्धता, छल, कपट, दंभ, पाखण्ड।
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अवैध |
avaidh |
28 |
- अमानवीयता पूर्ण क्रियाकलाप।
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असंग्रह |
asangraha |
28 |
- समृद्धि सहज प्रमाण यही असंग्रह वैभव।
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असंतुलन |
asantulan |
28 |
- समस्याओं की पीड़ा, भ्रमित मानव ही अमानवीयता वश असंतुलित और असंतुलनकारी, भ्रमवश मानसिकता में किया गया कार्य-व्यवहार अव्यवस्था है।
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असंतुलित |
asantulit |
28 |
- भ्रमवश ही संस्कृति सभ्यता विधि व्यवस्था में असंतुलन, मनुष्य समस्या ग्रस्त है।
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असंतोष |
asantosh |
28 |
- संग्रह सुविधावादी मानसिकता।
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अस्तेय |
asteya |
28 |
- चोरी न करना। अस्तेय प्रतिष्ठा से धूर्तता व विकलता का नाश तथा तुष्टि व संतोष का उदय होता है।
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अस्तित्व |
astitva |
28 |
- व्यापक सत्ता में संपृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति रूपी अनंत इकाईयों सहज वैभव।
- “जो है” जिसके होने को स्पष्ट व प्रमाण रूप में समझने का प्रयास आदिकाल से ही मानव करता रहा।
- “होना” त्व सहित होना। होने के आधार पर सभी वस्तुओं का अध्ययन, सूत्र, व्याख्या व विश्लेषण पूर्वक स्पष्ट होना। भौतिक-रासायनिक वस्तु के रूप में परिणामशील, यथास्थिति परम्परा में उपयोगिता-पूरकता विधि से त्व सहित व्यवस्था है। विकास क्रम, विकास सहज जागृति क्रम जागृति सहज स्थितियों में स्थित इकाईयाँ अपने त्व सहित व्यवस्था व समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने के रूप में है।
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अस्तित्व दर्शन |
astitva darshan |
29 |
- सर्वत्र सदा सदा विद्यमान, पारगामी पारदर्शी व्यापक वस्तु में भीगे, डूबे, घिरे जड़-चैतन्य रूपी प्रकृति चार अवस्था में धरती पर है, इसके रूप गुण स्वभाव धर्म सहज त्व सहित व्यवस्था-समग्र व्यवस्था में भागीदारी है। यही अस्तित्व, अनुभव में प्रमाण, अनुभव सहज तद्रूप विधि से मानसिकता होना पाया जाता है।
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अस्तित्व धर्म |
astitva dharma |
29 |
- विकास क्रम, विकास, जागृति क्रम, जागृति सहज स्थितियों में स्थित इकाईयाँ अपने त्व सहित व्यवस्था समग्र व्यवस्था में भागीदारी करने के रूप में है।
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अस्तित्व मूलक |
astitva mulak |
29 |
- होने के आधार पर सभी वस्तुओं का मानव अपने ज्ञान विवेक विज्ञान से अध्ययन करता है। मानव ही ज्ञानावस्था सहज वैभव है यही मानव कुल में जागृत जीवन द़ृष्टा पद प्रतिष्ठा सहज सूत्र है, होने के आधार पर जीने देने व जीने के आधार पर सोचना समझना करना फल परिणाम समझ के अनुरूप होना।
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अस्तित्ववादी |
astitvavadi |
29 |
- होने देने और होने के हर मुद्दे पर सूत्र व्याख्या विश्लेषण पूर्वक स्पष्ट होना।
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अस्तित्वशील |
astitvashil |
29 |
- भौतिक-रासायनिक एवं जीवन क्रियाएं परिणामशील यथास्थिति परम्परा में उपयोगिता पूरकता विधि से विकसित व्यवस्था है।
- विकासक्रम, विकास, जागृतिक्रम, जागृति में क्रियाशील प्रकृति।
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अस्तित्व पूर्ण |
astitva purna |
29 |
- सर्वत्र, सर्वदा, व्यापक में अनंत इकाईयों की स्थिति।
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