भक्ति |
bhakti |
137 |
- भय मुक्ति सहज भजन व सेवा प्रवृत्ति कार्यक्रम में किया गया सेवा।
- मानवीयता पूर्ण विधि से जीने में निष्ठा की अभिव्यक्ति।
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भजन |
bhajan |
137 |
- भ्रम-भय मुक्ति के लिए किया गया उपक्रम।
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भय |
bhay |
138 |
- अमानवीय मूल प्रवृत्तियों का स्व पर प्रभाव।
- संदिग्धता, सशंकता एवं विरोध ही भय है।
- भय से आतंक का जन्म होता है।
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भ्रम |
bhram |
138 |
- सत्यबोध के अभाव में चित्त में होने वाली चित्रण क्रिया जिसमें अतिव्याप्ति, अनाव्याप्ति, अव्याप्ति दोष रहता है, भ्रम होता है।
- यथार्थता से भिन्न मान्यता ही भ्रम है।
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भ्रम मुक्ति |
bhram mukti |
138 |
- ब्रह्मानुभूति पूर्ण क्षमता, योग्यता और पात्रता से सम्पन्न होना ही भ्रम मुक्ति है।
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भ्रान्ताभ्रान्त |
bhrantabhrant |
138 |
- अनुभव जागृति के अनंतर भ्रम का समीक्षा, सही समझ में आने के बाद गलतियों की समीक्षा, मानवीयतापूर्ण वैभव।
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भ्रान्ति |
bhranti |
138 |
- स्पष्ट न होना ही भ्रान्ति है।
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भ्रूण |
bhrun |
138 |
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भविष्यकाल |
bhavishyakaal |
138 |
- आगे का समय, संभावित समय, अनुमान होना।
- आगत में होने वाली क्रियायें।
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भव्यता |
bhavyata |
138 |
- ध्यानाकर्षण व अनुकरण योग्य प्रस्तुति।
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भाई |
bhai |
138 |
- भाग्योदय, सर्वतोमुखी समाधान, अभ्युदय, जागृति सहज प्रमाण योग्य संबंध।
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भागीदारी |
bhagidari |
138 |
- कर्त्तव्य और दायित्व का वहन-निर्वहन।
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भाग्य |
bhagya |
138 |
- प्राप्त संपदा समाधान समृद्धि भाग विभाग पूर्वक प्रमाणित करने योग्य।
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भार |
bhar |
138 |
- ऋणाकर्षण व धनाकर्षण का योगफल।
- भार अपने में धरती के साथ सहअस्तित्व सूत्र प्रमाणित करने के क्रम में होने वाला विन्यास है, सिद्धांत है।
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भारबंधन |
bharbandhan |
138 |
- अणु रूप में परमाणुओं से रचित रचना, ऋणात्मक धनात्मक आकर्षण बल का योगफल।
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भाव |
bhav |
139 |
- मौलिकता, मूल्य। इकाई और उसकी मूल्यक्ता का वियोग नहीं है - यही स्वभाव है।
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भावक्रिया |
bhavkriya |
139 |
- जागृतिपूर्वक मौलिक अभिव्यक्ति, चारों अवस्थाओं का अपना-अपना मौलिकता।
- मूल्य और मूल्यांकन प्रक्रिया की ‘भाव क्रिया’ संज्ञा है।
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भावना |
bhavana |
139 |
- संबंध व मूल्यों सहित प्रस्तुति।
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भावभेद |
bhavbhed |
139 |
- विविध सम्बन्धों के साथ मौलिकता में विविधता संबंधों के साथ भाव पूर्वक जीना।
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भावी |
bhavi |
139 |
- फल परिणाम घटनायें होने वाला।
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