आवश्यकीय नियम |
aavashyakiya niyam |
39 |
- प्राकृतिक नियम।
- बौद्धिक नियम।
- सामाजिक नियम।
- सामाजिक नियम अखण्ड समाज के अर्थ में।
- प्राकृतिक नियम ऋतु संतुलन के अर्थ में।
- बौद्धिक नियम मन: स्वस्थता को सार्वभौम व्यवस्था के रूप में प्रमाणित करने के अर्थ में सार्थक है।
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आवास |
aavas |
40 |
- आवश्यकतानुसार शरीर संरक्षण के अर्थ में रचित रचना।
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आविष्कार |
aavishkar |
40 |
- परम्परा में अपेक्षित अप्रचलित को प्रमाण सहित प्रचलित करना।
- अप्रचलित अथवा अज्ञात उपलब्धि को या सत्यता को सुलभ करना।
- मानव पंरपरा में, से, के लिए अज्ञात को ज्ञात एवं अप्राप्त को प्राप्त करने में योगदान क्रिया।
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आवेग |
aaveg |
40 |
- आवश्यकतानुसार प्राप्त गति।
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आवेदित |
aavedit |
40 |
- गुणात्मक परिवर्तन की अपेक्षा में शोध किया गया सूत्र व्याख्या अनुसंधान विधि से।
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आवेश |
aavesh |
40 |
- भ्रमित कार्य व्यवहार प्रवृत्ति।
- हस्तक्षेप, ह्रास की ओर गति।
- अतिक्रमण या आक्रमण की प्रतिक्रिया में प्राप्त गति।
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आवेशित |
aaveshit |
40 |
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आसक्ति |
aasakti |
40 |
- लघु मूल्य को गुरु मूल्य मानना, यही प्रलोभन।
- चार विषयों में निमग्नता।
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आसक्तिभेद |
aasaktibhed |
40 |
- अतिभोग, बहुभोग में विविधता।
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आसन्न |
aasann |
40 |
- अग्रिम संभावना का सहज रूप में उपस्थित होना।
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आसव |
aasav |
40 |
- मीठा पदार्थ को सड़ाकर किया गया वाष्प संग्रह।
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आसवीकरण |
aasavikarana |
40 |
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आस्था |
aastha |
40 |
- जागृति क्रम में समझे बिना समर्पित होना अथवा मान लेना।
- जागृति विधि से अस्तित्व में स्थिरता का विश्वास।
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आस्वादन |
aasvadan |
40 |
- भ्रमवश संवेदनाओं का, जागृति पूर्वक मूल्यों का।
- आशा एवं रूचि सहित ग्रहण क्रिया।
- आशय पूर्वक स्वादन क्रिया ही आशा है। जिस स्वादन के बिना सहअस्तित्व में द़ृढ़ता व सुरक्षा नहीं है, उसकी अपेक्षा ही स्वादन क्रिया का आशय है। मूल्य रूचि ग्राही क्रिया ही स्वादन है।
- जो जिनमें नहीं हो या कम हो और उसे पाने की इच्छा हो, ऐसी स्थिति में उसकी उपलब्धि से प्राप्त प्रभाव पूर्ण क्रिया की, जिसमें तृप्ति या तृप्ति का प्रत्याशा आशय हो, की आस्वादन संज्ञा है।
- रूचिमूलक, मूल्यमूलक, लक्ष्यमूलक आस्वादन।
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आस्वादन बल |
aasvadan bal |
41 |
- मनोबल। मूल्यों का आस्वादन बल।
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आस्तिकता |
aastikata |
41 |
- सहअस्तित्व, विकास और जागृति में विश्वास और निष्ठा।
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आस्तिक |
aastik |
41 |
- होने का स्वीकार, होने में निष्ठा, स्वयं में विश्वास, सह-अस्तित्व में निष्ठा।
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आशय |
aashay |
41 |
- मानव में मानसिकता, प्राणावस्था में प्राणाशय एवं पदार्थावस्था में अन्नाशय और व्यापक वस्तु में प्रेरित रहने की आशय, जीवावस्था में जीने की आशा ही आशय है। भ्रमित मानव में विषयासिक्त में आशय; जागृत मानव में समाधान, समृद्धि पूर्वक उपकार करने का आशय।
- निरंतर रूप में सुख की अपेक्षा।
- मूल्यों का भास एवं आभास, स्वागत व आस्वादन।
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आशय रसादि तंत्र विधि |
aashay rasadi tantra vidhi |
41 |
- रस तंत्र से मांस तंत्र, मांस तंत्र से मज्जा तंत्र, रस मांस मज्जा तंत्र से अस्थि (हड्डी), स्नायु (नस-नाड़ी) और रक्त तंत्र व वसा तंत्र। इन सात तंत्र विधि से अन्नाशय पक्वाशय प्राणाशय रसाशय मूत्राशय मलाशय गर्भाशय।
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आशा |
aasha |
41 |
- जीवावस्था में जीने की आशा, ज्ञानावस्था में सुख आशा के रूप में।
- सुखापेक्षा सहित, आस्वादन और चयन क्रिया।
- आशय पूर्वक की गई क्रिया।
- चैतन्य इकाई की अंतिम परिवेशीय (चतुर्थ परिवेशीय) अक्षय जीवन शक्ति का वैभव।
- आश्रयपूर्वक की गयी अपेक्षा की आशा संज्ञा है। शरीर के आश्रय पद्धति से और अनुभव के आश्रय पद्धति से आशयों का होना पाया जाता है।
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