आधार |
aadhaar |
36 |
- पदार्थ, प्राण, जीव, ज्ञानावस्था प्रकट होने के लिए यह धरती। ज्ञानावस्था में देवत्व, दिव्यत्व-ज्ञान विवेक व विज्ञान सहज प्रमाण का आधार मानव परम्परा में, से, के लिए है।
- समाये रहने के लिए अनन्य रूपी महत्ता।
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आनंद |
aanand |
36 |
- सहअस्तित्व में अनुभव।
- सहअस्तित्व में अनुभूति, फलस्वरूप सत्यानुभूत इकाई के बुद्धि पर होने वाला आप्लावन प्रभाव।
- अनुभव की अभिव्यक्ति, संप्रेषण क्रिया अर्थात् प्रमाण और प्रामाणिकता की अभिव्यक्ति संप्रेषण क्रिया।
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आनंदमय कोष |
anandamay kosh |
36 |
- अनुभव-बोध बुद्धि में होना, विज्ञानमय कोष सम्मत।
- सुख, शांति, संतोष एवं आनंद को प्रकट करने की क्रिया।
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आनुषंगिक |
aanushangik |
36 |
- क्रमागत रूप से एक दूसरे से जुड़ी हुई।
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आनुषंगिक रूप |
aanushangik rup |
36 |
- हर रचना मूल परस्परता पूरकता-उपयोगिता से संतुलन।
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आन्दोलन |
aandolan |
36 |
- असंतुलित गति एवं प्रक्रिया।
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आपूर्तिकरण |
aapurtikaran |
36 |
- पोषण नियोजन संरक्षण क्रिया।
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आप्त कामना |
aapt kamna |
36 |
- मानवीयता एवं अतिमानवीयता पूर्ण वैभव में, से, के लिए तीव्र इच्छा।
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आप्त पुरुष |
aapt purush |
36 |
- ज्ञान, विवेक, विज्ञान सहज सत्य बोध कराने वाला।
- मोक्ष प्राप्त कर चुका व्यक्ति। भ्रम मुक्ति ही मोक्ष है।
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आप्तवचन |
aaptavachan |
37 |
- सत्य बोध होने योग्य वाक्य।
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आप्यायन |
aapyayan |
37 |
- स्वागत आस्वादन पूर्वक ग्रहण क्रियायें आप्यायन हैं। आप्यायन क्रियायें मूल्यों को स्वयं में समा लेने के रूप में स्पष्ट है।
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आप्लावन |
aaplavan |
37 |
- निर्भ्रमता एवं अनुभूति का प्रभाव जो बुद्धि पर होता है।
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आप्लावित |
aaplavit |
37 |
- सत्य बोध होने का प्रभाव, सभी जीवन क्रियायें प्रभावित होना।
- सत्य बोध कराना।
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आबंटन |
aabantan |
37 |
- वस्तुओं के साथ विनिमय, ज्ञानार्जन।
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आबालवृद्ध |
aabalvriddha |
37 |
- बचपन से बुढ़ापे तक परंपरा वैभव।
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आभास |
aabhas |
37 |
- सत्य सहज होने का सामान्य स्वीकृति।
- भाषा सहित अर्थ कल्पना अस्तित्व में वस्तु रूप में स्वीकार होना, अर्थ संगति के लिए तर्क का प्रयोग होना, अर्थ वस्तु के रूप में अस्तित्व में स्पष्ट तथा स्वीकार होना फलस्वरूप तर्क संगत होना।
- अध्ययन विधि में न्याय-धर्म-सत्य सहज तुलन = मनन।
- अस्तित्व की आंशिकता की स्पष्ट स्वीकृति।
- तर्क के आधार पर सत्य स्वीकार होना।
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आमुष्मिक |
aamushmik |
37 |
- जागृत जीवन मरणोत्तर स्थिति में भी जागृत सूत्र सम्पन्न रहता है।
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आमोद |
aamod |
37 |
- आवश्यकता उपयोगिता पूरकता में सफलता सहज उत्सव प्रकाशन।
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आमंत्रण |
aamantran |
37 |
- समझ स्वीकार होना।
- आवश्यकतानुसार लोक स्वीकार होना।
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आयतन |
aayatan |
37 |
- विस्तार में रचना।
- विस्तार की सीमा।
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