आयाम |
aayam |
37 |
- अविभाज्य रूप में रूप, गुण, स्वभाव, धर्म प्रमाण।
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आयुष्मान |
aayushman |
37 |
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आयोजन |
aayojana |
38 |
- जागृति के अर्थ में आत्मीयता पूर्वक किया गया सम्मेलन।
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आरंभ |
aarambha |
38 |
- समाधान, समृद्धिपूर्वक प्रमाणित होने का शुरुआत।
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आराधना |
aaradhana |
38 |
- जागृति सहज लक्ष्य पूर्ति के लिए किया गया प्रयोग।
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आरोग्य |
aarogya |
38 |
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आरोप |
aarop |
38 |
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आलस्य |
aalasya |
38 |
- कार्य की उपादयेता को जानते हुए भी व्यवहार में ना होना।
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आलोक |
aalok |
38 |
- प्रकाश प्रभावन क्रिया।
- सर्वत्र, सर्वदा ज्ञानमयता।
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आल्हाद |
aalhad |
38 |
- उत्साह, सर्वशुभ कार्य प्रवृत्ति।
- अनुभूति सहज बोध एवं चिंतन।
- सत्यानुभूत आत्मा का चित्त पर प्रभाव ही साक्षात्कार है। यही आल्हाद है।
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आवर्तन |
aavartan |
38 |
- दोहराने वाली क्रिया।
- क्रिया (श्रम, गति परिणाम) परम्परा।
- यथास्थिति, उपयोगिता-पूरकता सहज परम्परा।
- पदार्थावस्था - परिणामानुषंगी।
प्राणावस्था - बीजानुषंगी।
जीवावस्था - वंशानुषंगी।
ज्ञानावस्था - संस्कारानुषंगीय परम्परा में आवर्तनशील हैं
- ऋण धनात्मक गुण, स्वभाव प्रकाशन सीमा गतिपथ।
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प्राणावस्था |
pranavastha |
131 |
- प्राण कोषाओं से रचित रचना संसार।
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जीवावस्था |
jeevavastha |
80 |
- जीव संसार, समृद्ध मेधस संपन्न शरीर रचना और जीवन का संयुक्त रूप में प्रकाशन, मानव के निर्देशों को अनुकरण करने वाला जीव।
- जीने की आशा सहित, अस्तित्वशील।
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आवर्तनशील |
aavartanshil |
38 |
- पदार्थावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से पदार्थावस्था आवर्तनशील।
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आवर्तनशीलता |
aavartanshilta |
38 |
- जागृत मानव विकसित चेतना विधि से ही पदार्थ, प्राण और जीवावस्था के साथ उपयोगिता पूरकता सहज प्रमाण।
- अन्य तीनों अवस्थाएं अपने-अपने यथास्थिति में उपयोगी, अग्रिम अवस्था के लिए पूरक होना ही आवर्तनशीलता है।
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आवर्तनशील विधि |
aavartanshil vidhi |
39 |
- ज्ञान, विवेक, विज्ञान जागृत मानव परम्परा सहज कार्य-व्यवहार फल-परिणाम ज्ञान सम्मत होना आवर्तनशीलता।
- मानवीयतापूर्ण आचरण संगत कार्य व्यवहार।
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आवर्तित |
aavartit |
39 |
- धरती सूर्य के सभी ओर आवर्तित है।
- परमाणु में मध्यांश के सभी ओर परिवेशों में कार्यरत सभी अंश आवर्तित रहते हैं। इसी के साथ प्रत्येक अंश अपने घूर्णन गति में रहते हैं इसे भी आवर्तन संज्ञा है और धरती भी अपने घूर्णन गति सहित आवर्तनशील है।
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आवश्यक |
aavashyak |
39 |
- मानवीयता और अति मानवीयता की ओर प्रगति।
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आवश्यकता |
aavashyakata |
39 |
- हर इकाई का अपने अस्तित्व को बनाए रखना एक आवश्यकता है और हर इकाई अपने त्व सहित व्यवस्था और समग्र व्यवस्था में भागीदारी करना एक आवश्यकता। मानव परम्परा में आर्थिक सामाजिक परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था तंत्र और प्राकृतिक संतुलन सहज आवश्यकता।
- जीवन जागृति रूपी लक्ष्य के प्रति संभावना सहित आशवस्त होना और उसके लिए तीव्र इच्छा सहित निष्ठा का होना।
- सामान्य व महत्वाकांक्षी वस्तुओं का उपयोगिता, सदुपयोगिता के आधार पर आवश्यकता से अधिक उत्पादन।
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आवश्यकतावादी |
aavashyakatavadi |
39 |
- मानव परम्परा में ही विकसित चेतना वादी व कारी होना पाया जाता है और इसी क्रम में आवश्यकता की पहचान, सीमा निर्धारण, उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजनशीलता ध्रुवीकरण होने के अर्थ में आवश्यकतावाद।
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