प्राकृतिक संतुलन |
prakritik santulan |
130 |
- वन खनिज संपदा के आधार पर ऋतु संतुलन धरती का संतुलन-मानव में, से, के लिए सन्तुलन।
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प्राकृतिक सम्पत्ति |
prakritik sampatti |
130 |
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प्राचीन |
prachin |
130 |
- बहुत पहले से घटित घटनायें स्वीकृत परंपरा।
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प्राण |
pran |
130 |
- समझदारी के अर्थ में प्रेरणा पाना, प्रमाणित करना। शरीर व्यवस्था के लिए प्राण वायु का होना, नियति विधि से प्राणावस्था का होना।
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प्राण घात |
pran ghat |
130 |
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प्राण तत्व |
pran tatva |
130 |
- सबको प्रेरणा के रूप में प्राप्त वस्तु, व्यापक वस्तु, साम्य ऊर्जा।
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प्राण पद चक्र |
pran pad chakra |
130 |
- पदार्थावस्था से प्राणावस्था की ओर विकसित होना और प्राणावस्था से पदार्थावस्था की ओर ह्रास होने की आवर्तन क्रिया।
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प्राण पोषक |
pran poshak |
130 |
- श्वास लेने में शुद्ध वायु की उपलब्धि।
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प्राणभय |
pranbhay |
130 |
- शरीर के प्रति असुरक्षा का भय।
- शरीर के अस्तित्व के प्रति संदिग्धता और सशंकता।
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प्राणमय कोष |
pranmay kosh |
131 |
- प्रेरणा पाने वाले, प्रकाशित करने वाले अंग।
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प्राण वायु |
pran vayu |
131 |
- शारीरिक कार्यकलाप के लिए आवश्यकीय वेग, तरंग सहित विरल पदार्थ।
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प्राण वायुतरंग |
pran vayutarang |
131 |
- ध्वनियों के दबाव से तरंगायित रहना।
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प्राण सूत्र |
pran sutra |
131 |
- प्राणावस्था के रचना के मूल में प्राणकोषा, प्राणकोषा में प्राणसूत्र, प्राणसूत्र में रचना विधि, यौगिक विधि से अनेक रस-उपरस तैयार होने के पश्चात पुष्टि तत्व और रचना तत्व। रचना तत्व तैयार होने के उपरान्त प्राणसूत्र में रचना विधि स्वर्स्फूत बना इसी क्रम में अनेक रचनायें बने।
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प्राण शोषक |
pran shoshak |
131 |
- श्वास लेने में अशुद्ध वायु की समीचीनता।
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प्राणाकार |
pranakar |
131 |
- वनस्पति पेड़ पौधे प्राणकोषा शरीर रचना के रूप में पहचान।
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प्राणी |
prani |
131 |
- प्राणवायु के समृद्धि कार्य में स्पंदनशील अणु समूह।
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प्रादुर्भाव |
pradurbhav |
131 |
- मानव परंपरा में जागृति पीढ़ी दर पीढ़ी, बीजों में वृक्ष हर भौगोलिक परिस्थिति में।
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प्रादुर्भूत |
pradurbhuta |
131 |
- पदार्थावस्था से प्राणावस्था, प्राणावस्था से जीवावस्था, जीवावस्था से ज्ञानावस्था प्रादुर्भूत होना इसी धरती पर प्रमाणित है जिसका बोध मानव को होता है।
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प्राप्त |
prapt |
131 |
- सत्ता सबको सर्वदा सर्वत्र एक सा प्राप्त है। प्राप्त की अनुभूति व प्राप्य का सान्निध्य प्रसिद्ध है।
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प्राप्त योग |
prapta yog |
131 |
- मध्यस्थ व्यवहार, विचार एवं अनुभव प्राप्त योग है जो अनवरत् उपलब्ध है।
- प्राप्त योग में न किसी का योग है न ही किसी का वियोग है।
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