दंड |
dand |
93 |
- जागृति परंपरा में सुधार प्रक्रिया का प्रमाण (भ्रमित परंपरा में यंत्रणा ही दण्ड है)।
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दंडनीति |
dandniti |
93 |
- सुधार प्रक्रिया का स्पष्टीकरण क्रियान्वयन विधि।
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धन |
dhan |
93 |
- जीव, वस्तु, मणि, धातु, स्थान।
- आहार, आवास, अलंकार, दूरश्रवण, दूरदर्शन, दूरगमन संबंधी वस्तुयें।
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धन भय |
dhan bhaya |
93 |
- धन पर आक्रमण, स्तेय (चोरी) एवं शोषण की संभावना = धन भय।
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धर्म |
dharm |
93 |
- मानव धर्म-सुख, समाधान = सुख, समस्या = दुख, जीवों का धर्म वंश के अनुसार जीने की आशा, वनस्पतियों/प्राणावस्था का धर्म-पुष्टि, पदार्थावस्था का धर्म-अस्तित्व।
- धारणा ही धर्म है। मानव धर्म = सुख, शान्ति, संतोष, आनंद।
- मानव धर्म = समाधान = क्यों, कैसे का उत्तर = हर दिशा, कोण, आयाम परिप्रेक्ष्यों में समाधान।
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धर्मगद्दी |
dharmgaddi |
93 |
- गद्दी में आसीन होने से धर्माचार्य मानना।
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धर्मग्रन्थ |
dharmagranth |
93 |
- धर्म को रहस्य के रूप में स्वीकारता हुआ जातियों के आधार पर वा‘मय प्रबंध।
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धर्मयुक्त अखण्ड समाज |
dharmayukt akhand samaj |
93 |
- मानवीयतापूर्ण जीवनरत समग्र जनजाति।
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धर्म सजातीयता |
dharm sajaatiyata |
93 |
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धर्मनिरपेक्ष |
dharmanirpeksh |
93 |
- समुदाय धर्मों से अछूता रहने समान द़ृष्टि रखने की प्रतिबद्धता, इस विधि से धर्म निरपेक्षता का चरित्र स्पष्ट नहीं हुआ, इसलिए समुदाय चेतना से मुक्त मानव संचेतना से संपन्न मानवीय आचार संहिता रूपी संविधान-धर्म निरपेक्ष संविधान।
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धर्मनीति |
dharmaneeti |
94 |
- तन-मन-धन रूपी अर्थ का सदुपयोग विधि प्रक्रिया।
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धर्मनैतिक |
dharmanaitik |
94 |
- तन, मन, धन रूपी अर्थ का सदुपयोग करने वाला।
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धर्म परायण |
dharm parayan |
94 |
- सर्वतोमुखी समाधान को प्रमाणित करने वाला, क्रिया पूर्णता का प्रमाण प्रस्तुत करने वाला।
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धर्मपूर्ण विचार |
dharmapurn vichar |
94 |
- तर्कसंगत विधि से सर्वतोमुखी समाधान का प्रतिपादन स्पष्टीकरण प्रमाण।
- समाधान पूर्ण विचार।
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धर्म बोध |
dharm bodh |
94 |
- सर्वतोमुखी समाधान समझ में आना।
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धर्म प्रणाली |
dharm pranali |
94 |
- समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व रूप में प्रमाण प्रस्तुत।
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धर्मात्मक तुलन |
dharmatmak tulan |
94 |
- समाधान के अर्थ में परिशीलन, मूल्यांकन व समीक्षा।
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धर्माधर्म |
dharmadharm |
94 |
- समाधान-समस्या का स्पष्टीकरण।
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धरती |
dharti |
94 |
- इसी धरती पर पदार्थ, प्राण, जीव और ज्ञानावस्था परंपरा के रूप में स्पष्ट है, पदार्थों का संगठित अणु रचित वृहद पिण्ड के रूप में यह धरती ठोस तरल विरल के रूप में होना द़ृष्टव्य है। धरती के साथ ही चारों अवस्थायें स्पष्ट होती है। धरती स्वयं पदार्थावस्था में है।
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धरती में संतुलन |
dharti me santulan |
94 |
- धरती अपने तापमान के रूप में और ऋतु संतुलन के रूप में संतुलित है।
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