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त्रिकालाबाध trikaalabadh 86
  • भूत, भविष्य, वर्तमान में एक सा विद्यमान सत्ता पारदर्शी, पारगामी सहज व्यापक सत्ता।
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त्रिस्तरीय tristariya 86
  • बौद्धिक, प्राकृतिक और सामाजिक-आर्थिक, परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था।
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त्रिधाकार्य क्षेत्र tridhakarya kshetra 86
  • बौद्धिक, भौतिक, आध्यात्मिक।
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थकान thakaan 86
  • मानसिक रूप में कुंठा, शरीर रूप में मनोगति के साथ चलने में असमर्थता।
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दग्ध विषयी dagdh vishayi 86
  • विषयों में अतिव्याप्ति दोष से हत।
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दबाव dabav 86
  • स्वभाव गति से आवेशित गति की ओर प्रेरणा।
  • इकाईयों की परस्परता में आवेशित गति का प्रभाव क्षेत्र।
  • इकाईयों की परस्परता में आवेशित गति का हस्तक्षेप।
  • परस्पर इकाईयों में आवेशित गति का प्रभावन।
  • आवेश एवं परिणाम प्रदायिता।
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दम dam 87
  • ह्रास की ओर जो आसक्ति है उसकी समापन क्रिया।
  • भ्रम, भय निवारण प्रक्रिया।
  • अपव्यवता से मुक्ति।
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दमन daman 87
  • कठोरता व क्रूरता पूर्वक संयत करने की प्रक्रिया।
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दम्भ dambh 87
  • आश्वासन देने के पश्चात् भी किये गये विश्वासघात की दंभ संज्ञा है।
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दयनीयता dayaniyata 87
  • अविद्या व भय के परिणाम में दयनीयता का प्रसव है।
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दया daya 87
  • जिसमें पात्रता हो और उसके अनुरूप वस्तु (समझ) न हो, उसे उस वस्तु को उपलब्ध करा देने की क्षमता।
  • जो जैसा है, जी रहा है उसमें हस्तक्षेप न करते हुए उसके विकास में सहायक होना ।
  • अविकसित के विकास में सहायक होना।
  • विपन्नता को सम्पन्नता की ओर गति देने वाली क्रिया।
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दयापूर्ण dayapurna 87
  • क्रियापूर्णता में पारंगत, आचरण पूर्णता में अभ्यासरत।
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दयापूर्ण व्यवहार dayapurna vyavahar 87
  • मानवीयता के अर्थ में सम्मान जनक विधि से किया गया कार्य व्यवहार।
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दयामय dayamay 87
  • कृपा और करुणामय पूर्वक सर्वशुभ चाहने वाला, प्रेरणा देने वाला, प्रमाणित करने वाला।
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दर्द dard 87
  • अव्यवस्था की पीड़ा, अव्यवस्था का दर्शक।
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दर्शक darshak 87
  • अस्तित्व में संपूर्ण वस्तु नित्य वर्तमान समझने वाला।
  • द़ृश्य समाने वाली द़ृष्टि का धारक-वाहक।
  • द़ृष्टियों द्वारा द़ृश्य को जानने मानने वाले मनुष्य।
  • अध्ययन विधि में मनुष्य में पाये जाने वाले तुलन प्रकाश में नियम, चिंतन (साक्षात्कार) प्रकाश में न्याय, अवधारणा बोध प्रकाश में धर्म (समाधान) और अनुभव प्रकाश में सत्य स्पष्ट होने की क्रिया।
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दर्शन darshan 88
  • समझने के लिए वस्तु, वस्तु सहज क्रियाकलाप फल परिणाम समझा गया वस्तु, समझने की वस्तु।
  • दर्शक-द़ृष्टि के द्वारा द़ृश्य को समझने की क्रिया।
  • दर्शक-द़ृष्टि के द्वारा द़ृश्य को यथावत समझना और उसकी अभिव्यक्ति सम्प्रेषणा व प्रकाशन क्रिया।
  • द़ृष्टि से प्राप्त समझ, अवधारणा और अनुभव ही दर्शन है।
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दर्शनभेद darshanbhed 88
  • रहस्य मूलक ईश्वर केन्द्रित चिंतन द़ृष्टि, अस्थिरता अनिश्चयता मूलक वस्तु केन्द्रित द़ृष्टि, अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित द़ृष्टि।
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दर्शन क्षमता darshan kshamata 88
  • ज्ञानावस्था की इकाई की मूल क्षमता।
  • जड़ चैतन्य क्रिया का अध्ययन ही दर्शन क्षमता है।
  • दर्शन क्षमता से सत्कर्म का निर्धारण है।
  • पूर्ण जागृति ही दर्शन क्षमता की परमावधि है।
  • मनुष्य में गुणात्मक परिवर्तन संज्ञानशीलता में ही होती है यही दर्शन क्षमता के रूप में सहअस्तित्व में ज्ञान एवं अनुभूति के रूप में प्रत्यक्ष है।
  • दर्शन क्षमता ही अध्ययन एवं उदय का कारण है।
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दरिद्र daridra 88
  • अत्याशा और अभावजन्य पीड़ा।
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