धरातल |
dharatal |
94 |
- धरती पर होना। स्वभाव गति प्रतिष्ठा का पृष्ठभूमि-सहअस्तित्व।
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धातु |
dhatu |
94 |
- गलनपूर्वक भी अपने अस्तित्व को यथावत बनाये रखने वाले और घनीभूत होने वाले वस्तु।
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धारक |
dharak |
94 |
- वहन करने वाली क्रिया सहित मानव समझ के अनन्तर समझदारी का वहन, अनुभवमूलक विधि से समाधान का धारक-वाहक।
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धारणा |
dharna |
94 |
- सर्वतोमुखी समाधान का स्वीकृत रूप, बोध रूप, अनुभव रूप, प्रमाण रूप। सुखी होने की विधि।
- जिससे जिसका वियोग न हो।
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धी |
dhi |
95 |
- उत्सव शीलता का प्रवर्तन क्रिया (परावर्तन के लिए तत्परता)।
- ज्ञान ग्रहण एवं प्रमाणीकरण क्षमता।
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धीरता |
dhirta |
95 |
- न्याय पूर्वक जीने में द़ृढ़ता एवं निष्ठा।
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धैर्य |
dhairya |
95 |
- संकल्प के अनुरूप विचार, इच्छा एवं मानसिकता में निरंतरता।
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ध्रुव |
dhruv |
95 |
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ध्रुवीकरण |
dhruvikaran |
95 |
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ध्रुवीकृत |
dhruvikrit |
95 |
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ध्यान |
dhyan |
95 |
- समझने के लिए ध्यान और समझ के अनंतर प्रमाणित करने में स्वभाविक ध्यान है।
- समझने के लिये मन, बुद्धि को केन्द्रित करना।
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ध्यान विधि |
dhyan vidhi |
95 |
- लक्ष्य के प्रति निष्ठान्वित प्रमाणित होना रहना।
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ध्येय |
dhyey |
95 |
- लक्ष्य, मानव लक्ष्य, जीवन लक्ष्य, नियति सहज लक्ष्य।
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ध्वनि |
dhvani |
95 |
- घर्षण से उत्पन्न तरंग जो दूर-दूर गतित होती है।
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ध्वनित |
dhvanit |
95 |
- इंगित होना, सुनने में आना-अर्थ अस्तित्व में वस्तु के रूप में समझ में आना।
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धृृति |
dhriti |
95 |
- संपूर्ण सह-अस्तित्व सहज सत्य में निष्ठा और परावर्तित करने के लिए प्रवृत्ति सत्य या सत्यता का बोध सहज परावर्तन में निष्ठा।
- भय का अभाव (अभयता)। वर्तमान में विश्वास होना ही धृति है।
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नजरिया |
najariya |
95 |
- द़ृष्टि कोण। द़ृष्टि गोचर, ज्ञान गोचर।
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नमस्कार |
namaskar |
95 |
- विनय पूर्वक तथ्यों के स्वीकार में सहमति प्रकटन।
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नवधा क्रिया |
navdha kriya |
95 |
- कायिक, वाचिक, मानसिक व कृत, कारित, अनुमोदित।
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नवधा स्थापित मूल्य |
navdha sthapit mulya |
95 |
- कृतज्ञता, गौरव, श्रद्धा, प्रेम, विश्वास, वात्सल्य, ममता, सम्मान, स्नेह।
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