श्रृंगारिकता |
shringarikata |
224 |
- शरीर व स्थान शोभाकरण क्रिया, सामग्री सहित।
- ज्ञ
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ज्ञान |
gyan |
222 |
- अनुभव में आनन्द, व्यवसाय में नियम, अपरिणामता के कारण पूर्ण, सर्वत्र एक सा अनुभव में आने के कारण ईश्वर, ज्ञान में समस्त क्रियायें संरक्षित एवं नियंत्रित होने के कारण लोकेश, सर्वत्र एक सा विद्यमान रहने के कारण व्यापक, चैतन्य होने के कारण चेतना, आत्मा से अति सूक्ष्मतम एवं असीम अरूप होने के कारण परमात्मा, प्रत्येक वस्तु संपृक्त होकर सचेष्ट होने के कारण निरपेक्ष शक्ति, संपूर्ण प्रकृति का आधार होने के कारण मूल सत्ता एवं प्राण।
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ज्ञानात्मा |
gyanatma |
222 |
- मानव शरीर को संचालित करता हुआ चैतन्य पुंज (जीवन)।
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ज्ञानानुभूति |
gyananubhooti |
222 |
- प्रामाणिकता = जाना हुए को मानना एवं माने हुए को जानना = समझ = अस्तित्व में, से, के लिए द़ृष्टा पद = ज्ञाता पद = व्यापकता में जड़-चैतन्य प्रकृति का संपृक्तता पूर्ण स्वीकृति निरंतरता।
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ज्ञापन |
gyapan |
222 |
- विधिवत् ज्ञान प्रदान करने के लिए की गई स्मरणीय प्रक्रिया।
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कर्तव्य बुद्धि |
kartavya buddhi |
55 |
- उत्पादन कार्य में कुशलता निपुणता को नियोजित करने की विधि सहज प्रवृत्ति |
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कानून परस्ती |
kanoon parasti |
57 |
- शासन नियंत्रण के अर्थ में जो नियमों की जनस्वीकृति है उसे स्वीकारना।
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कारणात्मक भाषा |
karanatmak bhasha |
58 |
- यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता सहज अनुभव मूलक अभिव्यक्ति।
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कालक्षेप प्रक्रिया |
kaalakshep prakriya |
60 |
- समय को निरर्थक विधि से भय प्रलोभन के अर्थ में प्रयोग करना।
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गति रहित अस्तित्व |
gati rahit astitva |
66 |
- व्यापक वस्तु, पारगामी, पारदर्शी और गति दबाव मुक्त।
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स्थापित मूल्य |
sthapit mulya |
210 |
- सम्बन्धो में स्थापित मूल्य नौ है - कृतज्ञता, गौरव, श्रद्धा, प्रेम, विश्वास, वात्सल्य, ममता, सम्मान और स्नेह |
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निर्बीज विचार |
nirbeej vichar |
100 |
- द़ृष्टा पद प्रतिष्ठा जागृति पूर्ण विचार, सार्वभौम व्यवस्था अखण्ड समाजवादी विचार, जीवन लक्ष्य, मानव लक्ष्य से अविभाज्यतापूर्ण विचार।
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निर्भ्रम विचार |
nirbhram vichar |
100 |
- अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था वादी विचार, प्राणावस्था के रचनायें जीवन रहित स्पन्दन युक्त, जीवावस्था में जीवन और शरीर का संयुक्त प्रकाशन, ज्ञानावस्था में शरीर जीवन व जीवन जागृति सहज प्रमाण सहज शिक्षा संस्कार परम्परा।
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न्याय सम्मत नीति |
nyay sammat niti |
103 |
- संबंधों का निर्वाहपूर्वक तन, मन, धन रूपी अर्थ का सदुपयोग पूर्वक सुरक्षा का प्रमाण प्रस्तुत करना।
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न्यायपूर्ण व्यवहार |
nyaypurn vyavhar |
103 |
- संबंधों में न्यायपूर्वक जीते हुए लाभ-हानि मुक्त लेन-देन, समृद्धि का प्रमाण।
- मानवीयतापूर्ण पद्धति से दायित्व एवं कर्तव्यों का निर्वाह। सार्वभौम व्यवस्था के अर्थ में पहचान।
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अतिमानवीयता |
atimanaviyata |
4 |
- धीरता, वीरता, उदारता, दया, कृपा तथा करुणापूर्ण स्वभाव।
- सुख, शांति, संतोष व आनंद रूपी धर्म व सत्यमय द़ृष्टियाँ। विषय - लोकेषणा तथा सहअस्तित्व रूपी परम सत्य।
- देव मानव तथा दिव्य मानव।
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अनुकूल आचरण |
anukul aacharan |
10 |
- मानवीय मूल्य चरित्र नैतिकता सहज प्रमाण परम्परा।
- स्वीकारने योग्य आचरण।
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अनुभव दर्शन |
anubhav darshan |
13 |
- सहअस्तित्व में अनुभव प्रमाण सहज सत्यापन।
- व्यापक वस्तु में संपूर्ण एक-एक संपृक्त है यह समझ में आना प्रमाणित होना।
- व्यापक वस्तु सहज साम्य ऊर्जा के रूप में समझ में आना प्रमाणित होने का सूत्र व व्याख्या है।
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अनुभवात्मक अध्यात्मवाद |
anubhavatmak adhyatmavad |
13 |
- सहअस्तित्व में मध्यस्थ सत्ता, मध्यस्थ क्रिया, मध्यस्थ बल, मध्यस्थ शक्ति और मध्यस्थ जीवन का अध्ययन, अवधारणा और अनुभव वर्तमान।
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अनुवर्ती क्रिया |
anuvarti kriya |
15 |
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