अन्त:करण क्रिया |
antahkaran kriya |
18 |
- सहअस्तित्व में अनुभव सम्पन्न जीवन जागृति सहज द़ृष्टापद क्रिया, जागृत जीवन क्रिया।
- न्याय धर्म सत्य सहज प्रमाण सम्पन्न जीवन क्रिया।
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अपरिणामिता |
aparinamita |
20 |
- भारबन्धन, अणुबन्धन, प्रस्थापन-विस्थापन से मुक्त जीवन वैभव।
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अपूर्ण बोध |
apurn bodh |
21 |
- आत्म बोध के पूर्व बुद्धि सहज स्वीकृति ही अपूर्ण बोध |
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अपूर्ण समाज |
apurn samaj |
21 |
- सच्चरित्रता सहित समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सहज प्रमाण संपन्न होने तक अपूर्ण समाज।
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अमानवीयता |
amanaviyata |
24 |
- हीनता, दीनता, क्रूरतात्मक स्वभाव; प्रिय, हित, लाभात्मक द़ृष्टि तथा आहार, निद्रा, भय, मैथुन-सीमान्तवर्ती विषय प्रवृत्तियाँ।
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अविनाशिता |
avinashita |
27 |
- शाश्वत रहना, होना, नित्य वर्तमान।
- व्यापक वस्तु जड़-चैतन्य वस्तु में पारगामी परस्परता में पारदर्शी सहज वैभव होने के रूप में स्पष्ट।
- चैतन्य इकाई, गठनपूर्ण परमाणु, अणु बंधन भार बंधन से मुक्त, आशाबंधन से युक्त, जागृतिपूर्वक आशाबंधन से मुक्ति होने की स्पष्टता।
- सहअस्तित्व।
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अस्वाभाविकता |
asvabhavikta |
31 |
- चार अवस्थाओं का स्वभाव निश्चित है। भ्रम में मानव मानवीय स्वभाव से भिन्न मूल्यों का अनुकरण प्रकाशन क्रिया।
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आंशिक क्रिया |
aanshik kriya |
43 |
- अल्प रूप में किया गया क्रिया प्रक्रिया।
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उन्मादत्रय शिक्षा |
unmadtray shiksha |
48 |
- लाभोन्मादी अर्थशास्त्र, भोगोन्मादी समाज शास्त्र और कामोन्मादी मनोविज्ञान का प्रवर्तन क्रियाकलाप।
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उभय परिवार |
ubhay parivar |
51 |
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तकनीकी आरक्षण |
takniki aarakshan |
80 |
- तकनीकी को व्यक्तिवादी या समुदायवादी सीमा में आरक्षित कर लेना, मानव विरोधी घटना।
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द्वितीय सोपान |
dvitiy sopan |
92 |
- दश सोपानीय क्रम में ग्राम स्वराज्य व्यवस्था क्रम में परिवार, ग्राम मोहल्ला परिवार समूह सभा।
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धरती में पाचन |
dharti me pachan |
94 |
- धरती में सूर्य उष्मा का पाचन क्रिया धरती में समाई हुई खनिज तेल विकरणीय धातु व कोयले के आधार पर है।
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नवधा शिष्ट मूल्य |
navdha shisht mulya |
96 |
- सौम्यता, सरलता, पूज्यता, अनन्यता, सौजन्यता, सहजता, उदारता, सौहार्द्रता, निष्ठा।
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परिपूर्ण विपुल |
paripurna vipul |
110 |
- सर्वतोमुखी समाधान और समृद्धि।
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बुनियादी अभिप्सा |
buniyadi abhipsa |
136 |
- मूल रूप में अभ्युदय के लिए अपेक्षा, सर्वतोमुखी समाधान और प्रमाणित करने का अपेक्षा।
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भ्रान्तिपद चक्र |
bhrantipad chakra |
138 |
- जीवावस्था से भ्रान्त मानव की ओर विकसित होना और भ्रान्त मानव से जीवावस्था की ओर ह्रास होने की आवर्तन क्रिया।
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मानवीय संचेतना |
manaviya sanchetna |
150 |
- जाने हुए को मानना, माने हुए को जानना।
- पहचाने हुए का निर्वाह करना। निर्वाह किए हुए को पहचानना।
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मौलिक अंतर |
maulik antar |
154 |
- चार अवस्था भेद से अथवा चार पदभेद से।
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व्यवहारान्वयन (गम्य) |
vyavaharanvayan (gamya) |
181 |
- व्यवहार में समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी, भागीदारी प्रमाणित होना।
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