व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
से विख्यात होता है। न्याय, उत्पादन, विनिमय, स्वास्थ्य-संयम, शिक्षा-संस्कार में होने वाला अनुभव ही सर्वतोमुखी समाधान है। यह मानव सहज जागृति की अभिव्यक्ति और संप्रेषणा है। सम्पूर्ण मानव अपने परिवार सहज आवश्यकता से अधिक कार्य करता है इसके फलन में समृद्धि का अनुभव होता है। यह भी समाधान है। हर परिवार सभा से विश्व परिवार सभा तक संबंधों का पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन और उभयतृप्ति पाने की विधि जागृतिपूर्वक सम्पन्न होता है। यह निरन्तर समाधान है। लाभ-हानि मुक्त विनिमय प्रणाली जागृति सहज मानव की अपेक्षा है। इस विधि से विनिमय कार्य का क्रियान्वयन स्वयं समाधान है। स्वास्थ्य संयम, स्वाभाविक रूप में जीवन जागृति को शरीर के द्वारा मानव परंपरा में प्रमाणित करने योग्य शरीर है। यही स्वास्थ्य का निश्चित स्वरूप है। जागृतिपूर्ण परंपरा में सर्वमानव अपने स्वास्थ्य को स्वस्थ बनाये रखने का उपाय और स्रोत बना ही रहता है। यह स्वयं में समाधान है। प्रत्येक मानव मानवीय शिक्षा-संस्कार पूर्वक स्वायत्त मानव, परिवार मानव, विश्व परिवार मानव के रूप में प्रमाणित हो पाता है। यह सर्वतोमुखी समाधान है।
सर्वमानव नित्य समाधान का ही प्यासा है न कि समस्या का। समस्याओं से जूझते-जूझते आ रही विविध समुदाय रूढ़ियां और मानसिकताएँ मानव कुल को त्रस्त कर रखा है। हर मानव प्रश्न चिन्हों से घायल है। इससे छूटना हर व्यक्ति चाहता है। इसीलिये अखण्ड समाज उसकी अपेक्षा, उसकी आपूर्ति स्रोत, विधि, नीति, पद्धति सर्वसुलभ होना अति आवश्यक है। इस प्रकार मानव धर्म सर्वतोमुखी समाधान है। यह सर्वमानव के लिए आवश्यक है। इसकी संभावना नित्य