व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
उनको भी 2 फल होने की इच्छा व्यक्त करते हैं, क्रम से सभी में आता है। चौथे स्थिति में देखा गया है कि 10 में से 9 को फल दिया गया और एक को नहीं दिया गया उस स्थिति में रोते हुए या छीनते हुए देखा गया। इस प्रकार से विविध विधिपूर्वक अध्ययन किया गया। सार संक्षेप में हर बच्चा न्याय चाहते हैं इसी बात की पुष्टि होती है। किसी को न देने पर भी, किसी को ज्यादा देने पर भी परेशानी बढ़ती है। इससे निष्कर्ष में यही निकलता है हम किसी को वस्तु नहीं दिया, हमारे द्वारा ही किया गया अन्याय बच्चों को घायल करता है। इसीलिये बच्चे न्याय का याचक हैं। किसी के हाथ में दो फल दिये हैं यह भी हमारे ही द्वारा किया गया अन्याय है। हमारे अन्याय के प्रति सम्मति बाकी नौ बच्चे को नहीं हो पाता है उसके व्यथा को भाँति-भाँति से व्यक्त करते हैं। इसी प्रकार से कपड़े या खिलौने आदि किसी भी आधार पर सर्वेक्षण किया जा सकता है। यह भी हम अध्ययन किये हैं हर बच्चे न्याय का अपेक्षा रखते हुए सही कार्य-व्यवहार करने का इच्छुक है। इसे इस प्रकार से देखा गया है कि अभिभावक (माता, पिता, संरक्षक, पोषक और बच्चों से प्यार करने वाले जितने भी वयस्क व्यक्ति होते हैं) उन सबका मार्गदर्शन को और भाषा को सीखा करते हैं। इससे पता लगता है कि जितने भी सिखाने वाले वयस्क और प्रौढ़ व्यक्ति जो कुछ भी सिखाते हैं उसको बच्चे सीखते ही हैं। उनमें से जिन-जिन मुद्दे पर बच्चे विश्वास करते हैं उन्हें बराबर निर्वाह करते हैं। जिन-जिन पर शंका होती है उन पर अपनी कल्पनाशीलता को प्रयोग करते हैं। इससे पता चलता है कि सही कार्य-व्यवहार करने के इच्छुक हैं। बच्चों में यह भी पाया गया है कि हर मानव संतान जब से बोलना आरंभ करता है, जो देखा, सुना रहता है उसी को बताने का