व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
का तात्पर्य असंतुलन से ही है। असंतुलन का स्पष्ट रूप अथवा चिन्हित रूप धरती सहज उर्वरकता का घट जाना अथवा उर्वरकता कम होना, लुप्त हो जाना, इसके स्थान पर अम्लीय, क्षारीय और रासायनिक धूलि धूसरित होने के आधारों पर धरती में असंतुलन उर्वरकता प्रणाली को अनुर्वरकता में बदलते हुए देखने को मिलता है। यही धरती का असंतुलन है, एक विधि से। दूसरे विधि से धरती का असंतुलन इसका वातावरण में परिवर्तन जिसका क्षतिपूर्ति अभी मानव के हौसले के अनुसार दिखायी नहीं पड़ता। यह धरती के वातावरण सहज विरल वस्तुओं का कवच सभी ओर दिखायी पड़ती है, इसमें जितना ऊँचाई सभी ओर फैली हुई है, वह अपने आप में कम होना स्वीकारा गया है। मुख्य रूप में सूर्य किरणों (ताप और वस्तु का संयोग का प्रतिबिम्बन) असंतुलन कार्य प्रभावों को सामान्य बनाने का कार्य, यही कवच, जो आज लुप्त हो गया अथवा होने वाला है, से होता रहा है। अब इस कवच का तिरोभाव होने से धरती का ताप बढ़ना शुरू हो गया आंकलित हो चुका है। धरती के ताप बढ़ने का तात्पर्य है धरती बुखार से ग्रसित हो गयी है। आदमी के शरीर में होने वाले बुखार की दवाई (फिर बुखार न हो ऐसी दवाई) अभी तक तैयार नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में धरती के बुखार की दवा कौन बनायेगा। यह एक अलंकारिक प्रश्न रूप है। साथ ही इस प्रश्न चिन्ह के मूल में मानव का ही करतूत है, यंत्र प्रमाण की ही विकरालता है। इसके आगे ताप बढ़ते-बढ़ते इसे 4 डिग्री बढ़ने के उपरान्त इस धरती के ध्रुव प्रदेश में धरती अपने संतुलन के लिए संग्रहित बर्फ पिघलने का अनुमान बन चुकी है। फलस्वरूप समुद्र की सतह सैकड़ों फीट बढ़कर पानी धरती को अपने अंतराल में छुपा सकता है, उस स्थिति में मानव परंपरा रहेगी