व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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बनती है, उसके बाद ही इसका विनियोजन संभव हो जायेगा। जहाँ तक वायु प्रदूषण है, इसका निराकरण तत्काल ही खनिज कोयला और तेल के प्रति चढ़े पागलपन को छोड़ना पड़ेगा। इसका सहज उपाय विकल्पात्मक ऊर्जा स्रोतों को पहचानना जिससे प्रदूषण न होता हो। ऐसा ऊर्जा स्रोत स्वाभाविक रूप में यही धरती प्रावधानित कर रखी है। जैसे वायु बल, प्रवाह बल, सूर्य ऊष्मा और गोबर-कचरा गैस। यह सब आवर्तनशील विधि से उपकार कार्य के रूप में नियोजित होते हैं। जैसा सूर्य ऊष्मा से ईंटा पत्थर को पकाने की भट्टियों को बना लेने से वह पक भी जाता है और उससे प्रदूषण की कोई सम्भावना भी नहीं रहती। प्रवाह दबाव कई नदी-नालों में मानव को उपलब्ध है जैसा ब्रह्मपुत्र, गंगा, यमुना नदियाँ जहाँ सर्वाधिक दबाव से बह पाती हैं, ऐसे स्थलों में प्रत्येक 20-25 मी. की दूरी में बराबर उसके दबाव को निश्चित वर्तुल गतिगामी प्रक्रिया से विद्युत ऊर्जा को उपार्जित कर सकते हैं। इस विधि से सर्वाधिक देश में आवश्यकता से अधिक विद्युत शक्ति के रूप में संभावित है। अभी तक प्रदूषण का कारण केवल ईंधन संयोजन विधि में दूरदर्शिता प्रज्ञा का अभाव ही रहा है। अतएव, गलती एवं अपराधों का सुधार करना, कराना, करने के लिए सम्मति देना हर मानव में समायी हुई सौजन्यता है।

पहले इस बात को स्पष्ट किया है कि मानव अपने को विविध समुदायों में परस्पर विरोधाभासी क्रम में पहचान कर लेने का अभिशाप ही इन सभी विकृतियों का कारण रहा है मूलतः इसी का निराकरण और समाधान अति अनिवार्य हो गया है। क्योंकि शोषण, द्रोह, विद्रोह और युद्ध को हम अपनाते हुए किसी भी विधि से वर्तमान में विश्वस्त हो नहीं पायेंगे बल्कि भय, कुशंका, दरिद्रता, दीनता, हीनता, क्रूरता