व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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अध्याय - 4

व्यवहारवादी समाज का स्वरूप

यह पूर्णतया समझ में आ चुका है समुदाय विधियों से चलकर कितने भी श्रेष्ठतम आदर्शों के साथ निभते हुए भी कटुता का कगार सम्मुख होते ही आया। कटुता का ही स्वरूप है - द्रोह, विद्रोह, शोषण और युद्ध। यह सब मानव में तनाव ग्रसित मानसिकता के रूप में अध्ययनगम्य है, यह सर्वविदित भी है। ऐसे मानसिक तनावों और इन्द्रिय लिप्सा के संयोग से सुविधा, संग्रह ही राहत की स्थली महसूस होना देखा गया है। इसी क्रम में मानव अपने-अपने समुदायों की भलाई के लिए भी सोचा है। ऐसा शुभ सदा ही पुनः सुविधा संग्रह रहे आया है। इस क्रम में हम और कितने भी शताब्दी प्रयत्न करें शुभ परिणामों के साथ जुड़ना संभव नहीं है।

सर्वशुभ का स्वरूप समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व ही है; और हम समाधानित रहने की स्थिति में ही समस्याओं का निराकरण कर पाते हैं। इसे वर्षों-वर्षों अनुभव कर देखा गया है। ऐसे समाधान अनेक दिशा, कोण, परिप्रेक्ष्य, आयामों के लिये आवश्यक होना पाया गया है। प्रत्येक मानव अपने में समाधानित होने की विधि मूलतः “मानव जाति एक, कर्म अनेक” के रूप में देखने, समझने, करने, करने के लिये मत देने के रूप में होना पाया गया।

मानव जाति को सर्वमानव में, से, के लिए अपेक्षित सर्वशुभ का धारक-वाहकता के रूप में होना, पहचाना गया है। सर्वशुभ ऊपर कहे हुए समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व रूप में होना देखा गया है। यह समाधान, समृद्धि का प्रमाण रूप में