व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
होना चाहता है। जागृति और अजागृति के बीच कौन सी ऐसी वस्तु है, कारण है, इसे परिष्कृत रूप में समझना ही एक मात्र उपाय है। हम इसे स्पष्टतया देखे हैं और सभी देख सकते हैं कि शरीर को जीवन समझना ही मूल मुद्दा है भ्रम का। इसके साथ जुड़ा हुआ दूसरा मुद्दा शरीर के बिना मानव परंपरा नहीं है। इन्हीं के अनुपम संयोग से ही अनेक समस्या और समाधानकारी गति और प्रवाह है। प्रत्येक मानव किसी न किसी अंश में आशा, विचार, इच्छा के रूप में प्रभाव है क्योंकि यह दूर-दूर तक प्रभावित करते आया। इसीलिये इसे प्रवाह के रूप में देखना सबके लिये सुलभ है। मानव में व्यक्त होने वाली संपूर्ण गतियाँ, प्रवाहित होने वाले आशा, विचार, इच्छा, सहित किये जाने वाले कायिक, वाचिक, मानसिक, कृत, कारित, अनुमोदित क्रियाकलाप ही हैं। क्योंकि गति और प्रवाह अलग-अलग होते नहीं। इसे दूसरे विधि से प्रवाह और दबाव कहा जा सकता है। तीसरे विधि से प्रवाह और प्रभाव क्षेत्र कहा जा सकता है।
यह सर्वविदित है कि प्रत्येक एक अपने वातावरण सहित सम्पूर्णता सहज वैभव है। ऐसी सम्पूर्णता में गति, स्थिति निहित रहती ही है। प्रभाव क्षेत्र ही प्रत्येक एक का अपने सीमा से अधिक वैभव का प्रमाण है। इसी क्रम में एक परमाणु अपने लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई से अधिक क्षेत्र में अपने प्रभाव को बनाए रखता है। इसका प्रमाण एक परमाणु, दूसरे परमाणु के बीच में शून्य स्थली दिखाई पड़ती है। इसी प्रकार परमाणु में निहित प्रत्येक अंश के परस्परता में भी शून्य स्थली रहता ही है। यह साम्य ऊर्जा सहज वैभव है। ऐसे ऊर्जा में निहित प्रत्येक परमाणु अपने त्व सहित पहचान और महिमा को स्थापित किया रहता है। यही प्रभाव क्षेत्र का तात्पर्य है। इसको और भी समझने जाएँ तो हर एक, एक