व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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लोग मानते हैं और कुछ लोग मानते नहीं है। यथा धरती के पेट से खनिज कोयला और तेल, धातुओं का निकालने की प्रक्रिया। इस कार्य में जितना तीव्र गति उत्पन्न किया है, उसको प्रगतिशील माना जा रहा है। इससे जो कुछ भी धरती का पेट खाली हो गया अथवा धरती को खोखला बना दिया गया, उसका भरपाई अभी इस धरती पर वर्तमान मानव परंपरा रहते तक हो पायेगा या नहीं एक विचारणीय बिन्दु है। भरपाई तो बाद की बात है इसके पहले हम मानव को क्या-क्या सोचने की जरूरत है, किस प्रणाली, पद्धति और नीतिपूर्वक परिवर्तन को अपनाने की आवश्यकता है, इसके लिए हमें समझ क्या चाहिए? यह गंभीरता से विचार करने और निर्णय लेने का बिन्दु है। इस निर्णय के पहले और एक बिन्दु है, धरती की शक्ल जैसी भी बिगड़ी है, उससे भावी परिणाम क्या-क्या घटित हो सकते हैं इस पर भी एक बार विधिवत् विचार करने की आवश्यकता है। इसलिए कि कम से कम अवधि में शीघ्रतीशीघ्र प्रदूषण कार्यकलापों को सर्वथा स्थगित कर सकें और विकल्पों को अपनाने में उत्साहित हो सकें।

धरती आज जिस शक्ल में दिखाई पड़ रही है, उसमें से खनिज तेल और कोयला धरती से बाहर कर दिया गया। धरती को एक अपने ढंग से क्रियाशील, स्वचालित वस्तु के रूप में पहचानने के उपरान्त यह समझ में आता है कि यही धरती इस सौर व्यूह में एक मात्र वैभवपूर्ण स्थिति में है क्योंकि इसी धरती पर पदार्थावस्था, प्राणावस्था, जीवावस्था व ज्ञानावस्था चारों अवस्थायें प्रगट हो चुकी हैं। इसमें से ज्ञानावस्था के मानव ही इस धरती का पेट फाड़ने के कार्यक्रम को प्रस्तुत किया है। इसके सामान्य दुष्परिणाम भी आने लगे हैं जैसे - जल, वायु और धरती में प्रदूषण। प्रदूषण