व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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चाहते हुए भी सार्थक न होने की स्थिति व घटना बनते ही आया।

इसके अनन्तर वैज्ञानिक विधि प्रयोग यंत्र प्रमाणों को स्वीकारा गया। क्योंकि पूर्वावर्ती प्रमाणों से तृप्ति नहीं मिल रहा था। प्रयत्न जारी था इसी को अपना लिया। प्रमाण स्थली में प्रयोगशाला अथवा यंत्र स्थापित होता गया फलस्वरूप सर्वाधिक संख्या में मानव प्रयोग विधि व उसके परिणामों को स्वीकारता आया।

प्रयोग विधियों से अभी तक सर्वमानव में वर्तमान में प्रमाणित क्रियाओं में से ज्ञानेन्द्रिय व कर्मेन्द्रिय गति बढ़ाने की उपलब्धि हुई है। चिन्हित रूप में हाथ-पैर, आँख-कान की क्रिया गतियाँ जो मानव में होती हैं उसे बढ़ाने के लिये यंत्रों की परिकल्पना व प्रमाण सिद्ध हुआ है। साथ ही गति बढ़ी भी है, जैसे किसी भी यान-वाहन से पैर की गति से अधिक गतिपूर्वक गम्य स्थलियों में पहुँचता हुआ देखने को मिलता है। हाथ से करने वाली क्रियाओं में से यथा हल जोतने व लिखने वाली क्रियाओं में गति स्थापित हुई है। यंत्रों से कृषि कार्यों को सम्पन्न होता हुआ देखने को मिलता है जैसे:- ट्रेक्टर एवं अन्य कृषि यंत्र। हाथ से होने वाली लिखाई के लिये टाइप मशीन से आरम्भ होकर कम्प्यूटर मशीन तक पहुँच चुका है। इसके अतिरिक्त भी कपड़ा व बर्तन बनाने में लोहादि धातुओं से जो-जो स्वरूप आवश्यकता के अनुसार मानव की परिकल्पना में आता है उसे सफल बनाने के लिये आवश्यक यंत्र उपकरण उपलब्ध हुआ है। इसी के साथ-साथ दूरश्रवण, दूरदर्शन सम्बन्धी सभी तंत्र-यंत्र कार्य विधि प्रचलित हो चुका है। ऐसे यंत्रों से खनिजों का धरती के पेट से निकाल कर अपने को कृत-कृत्य मानते आये हैं। इतना ही