व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
नहीं उपग्रहों की सहायता से दूरसंचार उपक्रम को प्रशस्त बनाने का कार्य, इससे मौसम को पहचानने में सहायता हुई है।
इन्हीं यंत्र उपकरणों की सहायता से अनेक स्वचालित प्रौद्योगिकी प्रक्रियायें सफल हो चुके हैं। इन सबको मानव स्वीकार कर चुका है। आज यह सब सुविधावादी विचार मानव के लिए उपलब्धि के रूप में पहचाना गया है। इसमें उल्लेखनीय तथ्य यही है सुविधा के लिए संग्रह अनिवार्य है। यही मुख्य आकर्षण और फंसाव है। सुविधा के लिए संग्रह अनिवार्य है। इसमें एक अवधि की सुविधा संग्रह के उपरान्त एक सीढ़ी और एक सीढ़ी होते-होते संग्रह सुविधा में व्यक्त मानव अपने शरीर यात्रा काल को अथवा शरीर काल को पूर्णतया अर्पित करने के उपरान्त भी बहुत सी सीढ़ियाँ शेष रह जाती हैं। इससे परिगणित होता है कि मानव तृप्ति चाहता है, तृप्ति के लिए संग्रह सुविधा को स्वीकार लेता है, इसके पहले सीढ़ी में जितना संग्रह सुविधा के प्रति अभाव विरानी, अतृप्ति, शंका, कुशंका, ईर्ष्या, द्वेष, वितण्डावाद मानव के लिए पीड़ादायक था, वह दूसरे, तीसरे कितने भी सीढ़ी पार किया है, उसके बाद पहले से अधिक ऊपर कहे पीड़ा सूत्र बढ़ते आये हैं।
संपूर्ण मानव राहत पाने की अपेक्षा से ही यंत्र प्रमाण (प्रयोग प्रमाण) और सुविधा संग्रह को स्वीकारा है। मानव तो स्वयं राहत पाया नहीं है, इसका साक्ष्य यही है - 1. बढ़ती हुई सामुदायिक कलह, परिवार कलह, 2. बढ़ती हुई प्रदूषण, 3. बिगड़ती हुई धरती। ये तीनों मुद्दे मानव के सम्मुख चिंता के रूप में प्रस्तुत हो चुके हैं। इसमें से धरती का शक्ल बिगड़ना अनेक उपद्रवों का कारण बन चुकी है जिन्हें कुछ