व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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  • सर्वतोमुखी न्याय होने-पाने की इच्छा;
  • सर्वतोमुखी समाधान होने-पाने की इच्छा;
  • परमसत्य दृष्टा होने की इच्छा;
  • व्यवस्था में जीने की इच्छा समग्र व्यवस्था में भागीदारी की इच्छा;
  • पूर्ण जागृत होने की इच्छा मानव परंपरा में समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सुलभ होने की इच्छा;
  • स्वायत्तता की इच्छा;
  • वैरविहीन परिवार की इच्छा;
  • स्वराज्य की इच्छा; एवं
  • स्वतंत्रता की इच्छा, समग्र मानव में सकारात्मक शुभेच्छा।

उक्त चित्रण से यह स्पष्ट हो जाता है कि हम मानव इस धरती पर जबसे स्थापित-गतित हैं तब से अभी तक किस-किस आशा, विचार, इच्छा सहज बिन्दुओं के संबंध में प्रमाणित हुए हैं? अर्थात् करके देखे हैं। जिसका परिणाम अथवा फल की भी समीक्षा हो चुकी है। इसी क्रम में और इच्छाएँ जो मानव परंपरा में व्यवहृत नहीं हो पायी हैं उसका चित्रण भी स्पष्ट है। जिन-जिन इच्छाओं को अभी तक हमने मानव परंपरा में चरितार्थ किया है वह सब अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था के रूप में सूत्रित होना संभव नहीं हो पाया क्योंकि अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था का वैभव रूप अथवा फल स्वरूप समाधान, समृद्धि, अभय, सहअस्तित्व सर्वसुलभ होना सहज है। यह तभी संभव है जब जीवन ज्ञान जैसा परम ज्ञान, सहअस्तित्व दर्शन जैसा परम दर्शन और मानवीयतापूर्ण आचरण रूपी परम आचरण में पारंगत होने की स्थिति सहज सुलभ हो पाए। यही प्रस्ताव है।