व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
का आधार और परिणाम है क्योंकि किसी संबंध को सुखपूर्वक निर्वाह करना आरंभ होता है उसी के साथ सुन्दरता और समाधान प्रभावित किया रहता है। समाधान सहित किसी संबंध को निर्वाह करना आरंभ करते हैं उसी समय से समाधान और सुख प्रभावित किया रहता है। इसी प्रकार सुन्दरतापूर्वक किसी संबंध को निर्वाह करना आरंभ करते हैं उसी के साथ समाधान और सुख प्रभावित किया रहता है। इसका प्रधान प्रक्रिया स्वरूप को हम देख पाते हैं कि अस्तित्व संबंध को समाधान पूर्वक निर्वाह करते हुए सुख, सुन्दरता को अनुभव किया जाता है। नैसर्गिकता के साथ सुन्दरतापूर्वक संबंध का निर्वाह करते हुए स्थिति-गति में सुख और समाधान का अनुभव करना सहज है। मानव संबंधों में सुखपूर्वक संबंध निर्वाह करता हुआ गति-स्थिति में सुन्दरता और समाधान का अनुभूत होना देखा गया है। यही पूर्णता का स्वरूप है उसकी अक्षुण्णता स्पष्ट है।
सम्पूर्ण उत्सव में लक्ष्य सुख, सुन्दर, समाधान का अनुभव; विचारों में उज्जवलता, कार्य-व्यवहार में उदात्तीकरण ही उत्साह और प्रसन्नता का उत्कर्ष होना देखा गया है। यह जागृतिपूर्वक ही सम्पन्न होना पाया गया है।
विवाह संस्कारोत्सव मुहूर्त में स्वाभाविक रूप में कन्या वर पक्ष के बन्धु-बांधव, मित्रों का उपस्थित रहना वांछनीय कार्य है। वधु-वर स्वाभाविक रूप में स्वायत्त मानव के रूप में पारंगत परिवार मानव के रूप में प्रमाणित रहने के आधार पर ही उभय अर्हता का निश्चय होना पाया जाता है। जैसे ही किसी शोभनीय स्थली में उभय पक्ष के सभी लोग एकत्रित होते हैं उसमें सभी आयु-वर्ग के लोगों का रहना स्वाभाविक है। सभा स्थल के एक ओर कन्या पक्ष के माता-पिताओं से