व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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संबंधित बन्धु-बान्धवों का होना, उन्हें क्रम से मातृ पक्ष के लोगों को माता के तरफ कतार से, पिता पक्ष के सभी लोगों को पिता के साथ कतार से बैठाया जाना शोभनीय होता है। इसी प्रकार वर पक्ष का भी कतारीकरण विधि से आसनासीन कराना होता है। इस कार्य में वधु-वर सहित उनके सभी मित्रगण भी प्रवृत्त रहते हैं। तीसरे ओर वधु का मित्रों की ओर तथा चौथे ओर वर के मित्रों का कतारीकरण विधि से आसनासीन कराया जाता है। तदोपरान्त आसनासीन वधु के माता-पिता के मध्य में रिक्त आसन पर वधु का आसीन होना उसी प्रकार वर के माता-पिता के मध्य में वर का आसीन होना सभा स्थल का शोभा सम्पन्न होती है। उसके तुरंत बाद वधु के पिता अपने आशय को व्यक्त करते हैं कि “मैं अमुक नाम वाला अपने पत्नी का नाम सहित, हम आपकी सम्पूर्ण जागृति और प्रामाणिकता सहित मेरे पुत्री अमुक नाम वाली जो यहाँ आपके सम्मुख प्रस्तुत है इनको मानवीय संस्कारों को समय-समय पर प्रस्थापित करते आया हूँ। इनका पोषण-सुरक्षा और सुशीलता को हम दोनों पति-पत्नी प्रेरककारक रहे हैं। हमारा विश्वास है कि मेरी पुत्री परिवार मानव के रूप में प्रमाणित होने में समर्थ है। अतएव अब हम इस समारोह में अमुक नाम वाले जिनके माता-पिता का नाम सहित वर के साथ विवाह करने के लिए हम कृत संकल्पित हैं। मेरे इस संकल्प के साथ मेरे तथा मेरी पत्नी के सभी बंधुओं, मेरी पुत्री के सभी मित्रों की सम्मति है।” इसी के साथ हर्ष ध्वनियाँ सम्मत उच्चारण करता हुआ सम्पन्न होगा।

इसी प्रकार वर पक्ष का पिता अथवा अभिभावक ऐसा ही विश्वासपूर्वक प्रस्तुत होना स्वाभाविक है। इसके तुरंत बाद सभा को संबोधित करता हुआ विवाहोत्सव का मार्गदर्शन