व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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करने वाला व्यक्ति विवाह के मार्मिक प्रतिबद्धता की आवश्यकता पर सम्बोधित करेगा। इसके तुरंत बाद जितने भी सभासद रहते हैं वधु-वर के, से उन-उनके साथ आत्मीयतापूर्वक विवाहोत्सव की औचित्यता पर अपने-अपने सम्मति व्यक्त करेंगे। पुनः हर्ष ध्वनि सम्पन्न होगी। इस बीच मंगलगीत, सौभाग्य गीत, परिवार मानव गीतों का सुस्वर गायन सम्पन्न होगा। इसमें हर नर-नारी का भाग लेना स्वाभाविक रहेगा। तदुपरांत वर-वधुओं के गले में उन-उनके माता-पिता फूल-माला पहनायेंगे।

सभा के मध्य में बनी हुई मण्डपाकार के समीप वधु-वर पहुँच कर एक-दूसरे को माला पहनायेंगे, पुनः हर्ष ध्वनि मंगल ध्वनि का होना स्वाभाविक है।

इसके उपरान्त विवाहोत्सव के मार्गदर्शक व्यक्ति के अनुसार सुखासन पर बैठे हुए वधु-वर दोनों पारी-पारी से बैठे हुए स्वयं को स्वायत्त मानव के रूप में होने का सत्यापन करेंगे और परिवार मानव के रूप में जीने के संकल्प को दृढ़ता से घोषित करेंगे। इसके उपरान्त

  • दोनों अपने-अपने माता-पिता का नाम सहित व्यवस्था मानव के रूप में जीने का संकल्प लेगें।
  • परिवार मानव के रूप में जीने का संकल्प करेंगे।
  • दोनों बारी-बारी से कायिक, वाचिक, मानसिक, कृत, कारित, अनुमोदित सभी कार्य-व्यवहार विचारों में एक दूसरे के पूरक होने का संकल्प करेंगे।

परिवार तथा अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी का दायित्व कर्तव्यों को निर्वाह करने का संकल्प करेंगे।