व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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मानवीयतापूर्ण संचेतना अर्थात् जानने, मानने, पहचानने, निर्वाह करने सहज कार्य-व्यवहार, विचार सम्पन्न करने की शुभ व सुन्दर समाधानपूर्ण स्थिति-गति रहेगी। मानव ही दृष्टा पद प्रतिष्ठा में होने के कारण विवाह के लिये अनुकूल समय को ऋतुकाल के अनुसार निर्णय लेना और ब्रह्माण्डीय किरण विधि से ग्रह-गोल-नक्षत्रों का स्थिति-गतियों को आवश्यकतानुसार पहचानना स्वाभाविक रहेगा। इसी के साथ दिन, वार, तिथियों को पहचानना रहेगा ही। ये सभी बिन्दुओं पर मानव सर्वतोमुखी प्रवृत्तियों का द्योतक है। इस क्रम में स्वाभाविक है बसन्त और शीत ऋतुओं में मानव को सभी देश-काल में विवाहोत्सव का अनुकूलता बना ही रहता है। मानवीयतापूर्ण परंपरा के साथ सभी ब्रह्माण्डीय किरण अनुकूल रहना स्वाभाविक रहता है। क्योंकि मानवीयतापूर्ण परंपरा का अवतरण में भी ब्रह्माण्डीय किरणों का सानुकूलता बना ही रहता है। इसी सत्यतावश ब्रह्माण्डीय किरणों का सानुकूलता में विश्वास होना स्वाभाविक है। इसके उपरान्त भी हर देश जो अक्षांश-देशान्तर रेखा विधि से धरती पर देश का चिन्हित होना उस देश पर ब्रह्माण्डीय किरणों के प्रभावों को पहचानना मानव जागृति सहज कृत्य और परीक्षण है। इस विधि से भी शुभ बेला को पहचान सकते हैं। सर्वसुलभ बेला यही है कि ऋतुकाल, परिस्थितियाँ उभय परिवार के लिये अनुकूल होना ही सार्वभौम औचित्यता है।

समारोह

मानव परंपरा ज्ञानावस्था की अभिव्यक्ति संस्कारानुषंगीय विधि से जागृति पूर्णता को प्रमाणित करने वाला होने के कारण सभी उत्सवों में संबंध, मूल्य, मूल्यांकन, उभयतृप्ति, तन, मन, धन रूपी अर्थ का सदुपयोग, सुरक्षा, सार्वभौम