व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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व्यवस्था में भागीदारी निर्वाह करना समीचीन रहता ही है। जिसकी अक्षुण्णता होना देखने को मिलता है। अतएव अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था के लिये पूरक है, सार्वभौम व्यवस्था अखण्ड समाज के लिये पूरक होना देखा गया है। इसी क्रम में अखण्ड समाज का अध्ययन और अवधारणा पूर्वक अनुभव सहज होना देखा गया है। इसके लिये अर्थात् संस्कार के लिये उत्सव के प्रकारों को स्पष्ट किया जा चुका है। सार्वभौम व्यवस्था का स्वरूप सभा विधि से अखण्ड समाज का स्वरूप परिवार विधि से चरितार्थ होना देखा गया है। सभी सभाओं में समारोह सम्पन्न होना एक आवश्यकता बना रहता है। इन समारोह की प्रधान अभिव्यक्ति सभा और सभा से अनुशासित पाँच-पाँच समितियों का कार्यकलाप उसकी स्थिति-गति का मूल्यांकन और सभा का उद्देश्य के आधार पर सफलताओं का आंकलन मूल्यांकन हर्ष ध्वनियों के साथ समारोह का उत्साह और प्रसन्नता का मूल्यांकन किया जाता है। हर सभा का अपने उत्सव को व्यक्त करने का निश्चित उपलब्धियों के साथ होना ही देखा गया है जैसे परिवार में समाधान, समृद्धि; परिवार समूह में न्याय, उत्पादन में समारस्यता; ग्राम मुहल्ला परिवार सभा में न्याय, उत्पादन विनिमय कार्यों में संतुलन और सामरस्यता समाधान का आधार बना रहता है। यही नित्य उत्सव का स्वरूप है। हर समारोह में, कम से कम ग्राम परिवार सभा में समारोह का सभी सम्भावनाएँ समीचीन रहता ही है।

ग्राम-मोहल्ला सभा से मनोनीत-अनुशासित पाँच समितियों का कार्यरत रहना स्वराज्य व्यवस्था का वैभव है। इन वैभव के सफलताओं को देखने सुनने के लिये पूरे ग्राम मुहल्लावासी को उत्सुक रहना आवश्यक है। ग्राम सभा से निश्चित नियंत्रित विधि से एक-एक समिति का मूल्यांकन