व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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सके और तृप्ति पा सके। उत्सव कार्य में एक आवश्यकता यह बना ही रहता है।

कर्म और व्यवहार संस्कार का सत्यापन हर मानव अपने स्वायत्तता में निष्ठा के रूप में सत्यापित करना स्वाभाविक कार्य है। अतएव इसे व्यवहार में सामाजिक और व्यवसाय में स्वावलंबन के रूप में ही पहचाना जाता है। जिसका सत्यापन हर स्वायत्त मानव (नर-नारी) करता है। यह उत्सव का स्वरूप में एक अंग बनके रहना आवश्यक है। ऐसी शिक्षा-संस्कार सम्पन्नता का उत्सव हर ग्राम में हर वर्ष सम्पन्न होना स्वाभाविक है आवश्यकता भी है क्योंकि अग्रिम पीढ़ी के लिये यह उत्सव प्रेरणा स्रोत बनकर ही रहता है। संस्कार मर्यादा बोध कराने वाला पारंगत आचार्य ही रहेंगे।

स्नातक अवधि में पहुँचा हुआ सभी गाँव के स्नातकों का संयुक्त उत्सव सभा सम्पन्न होना भी आवश्यकता है। यह शिक्षण संस्था में ही समारोह रूप में सम्पन्न होना सहज है। इस उत्सव का प्रयोजन परस्पर स्नातकों का सत्यापन, श्रवण, साथ में अध्ययन अवधि में बिताये गये दिनों की स्मृति के साथ मूल्यांकित करने का शुभ अवसर समीचीन रहता है। इस अवसर के आधार पर हर एक स्नातक को अन्य स्नातक सत्यापन के आधार पर प्रामाणिकता को मूल्यांकित करने का अवसर बना रहता है। इस अवसर का सटीक प्रस्तुति और सदुपयोग उत्सव के स्वरूप में वैभवित होना स्वाभाविक है। इन्हीं के साथ इनके सभी आचार्यों का मूल्यांकन और आशीष, आशीष का तात्पर्य स्नातक में जो स्वायत्तता स्थापित हुई है वह नित्य फलवती होने स्वायत्त मानव, समाज मानव, व्यवस्था मानव के रूप में प्रमाणित