व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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2. नामकरण उत्सव का भी जन्म उत्सव के अनुरूप ही कार्य सम्पन्न होना पाया जाता है। इस उत्सव में विशेषकर सार्थक नाम संबोधन और निर्देशन के रूप में सम्पादित किया जाना सामूहिक रूप में स्वीकृत होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया को सम्पादित करते समय सभी आयु वर्ग के लोग अपने-अपने प्रसन्नता उत्साह के साथ नाम चयन करना होता ही है। इसके सार्थकता के संबंध में उमंगपूर्ण वार्तालाप, गायन-गीत का प्रदर्शन सहित उत्सव सम्पन्न होना मानवीयतापूर्ण नामकरण संस्कार का स्वरूप होता है। इसका सार्थकता संबोधन और निर्देशन ही है। हर व्यक्ति संबोधन के लिये नाम का प्रयोग करना और कोई भी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को निर्देशित करना ज्ञानावस्था का सहज प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया केवल मानव में ही देखने को मिलता है। ज्ञानावस्था की मौलिकता नाम-निर्देशन, स्वीकृति, अनुभूति का सहज गति है। इन्हीं गति के आधार पर ज्ञानावस्था का मानव हर क्रियाकलाप में सार्थकता अर्थात् उपयोगिता और प्रयोजनीयता के आधार पर व्यवहार सुलभ, व्यवस्था सुलभ, होना पाया जाता है। अतएव जन्म संस्कार के साथ-साथ नामकरण संस्कार एक सार्थक उत्सव होना पाया जाता है।

3. जन्मदिन उत्सव संस्कार - जन्मदिनोत्सव को सम्पादित करने की उमंग, उमंग का तात्पर्य उत्साह और प्रसन्नता सहित आशय को व्यक्त करने से है। आशय जन्म दिवस का स्मरण बीते हुए वर्षों की गणना से सम्बन्धित रहता है। यह सर्वविदित है। इस क्रम में शैशवावस्था तक जीवन जागृति कामना सहित मानवीयतापूर्ण आचरण सम्पन्न होने, जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन ज्ञान में पारंगत होने के