व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
जन्मदिनोत्सव का प्रधान उद्देश्य और कार्यक्रम है। इस प्रकार जन्मदिनोत्सव के सम्पूर्ण अवयव स्पष्ट हो जाता हैं। इसी के साथ यह भी परस्पर प्रेरणा का आधार होता है कि जन्मदिनोत्सव जिनका मनाया जाता है उस समय उनका साथी, मित्र, भाई सब अपने-अपने सत्यापन विधि को अपनाना मानव परंपरा के लिये आवश्यकीय मौलिक प्रयोजन सिद्ध होना सहज है।
4. शिक्षा-संस्कार व्यवस्था - मानव जाति, धर्म, कर्म, व्यवहार, दीक्षा, संस्कार - हर मानव में, से, के लिये और मानव परंपरा में, से, के लिये एक अनिवार्य अध्ययन, अवधारणा, अनुभव प्रमाण है। इसी क्रम में मानव परंपरा अपने संपूर्ण वैभव को स्वायत्त मानव, परिवार मानव के रूप में प्रमाणित होना सहज है। फलस्वरूप अखण्ड समाज में भागीदारी पूर्वक समाज मानव और सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारीपूर्वक व्यवस्था मानव के रूप में प्रमाणित होना शिक्षा-संस्कार का सार्थक प्रयोजन है।
शिक्षा-संस्कार का आधार रूप अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन, मध्यस्थ दर्शन (सहअस्तित्ववादी विधि) से सम्पन्न होना देखा गया है। यही परम जागृति का द्योतक है। यही जागृत मानव परंपरा की आवश्यकता है। मध्यस्थ दर्शन का तात्पर्य मध्यस्थ जीवन, मध्यस्थ बल, मध्यस्थ शक्ति, मध्यस्थ सत्ता सहज विधि से अध्ययन कार्य को सहअस्तित्व सूत्र में पूर्णतया सजा लिया गया। यही शिक्षा का महत्वपूर्ण उपलब्धि है। मध्यस्थ जीवन का स्वरूप नियम, न्याय, धर्म, सत्य पूर्ण विधियों से जीने की कला ही है। यही परिवार मूलक स्वराज्य के रूप में स्वतंत्रता और स्वानुशासन के रूप में प्रमाणित होना देखा गया है। यही मध्यस्थ जीवन का