व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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कामनाओं सहित चर्चा, वार्तालाप, कामना गीत के साथ गायन, नृत्य, वाद्य के साथ उत्सव सम्पन्न करने का कार्यक्रम हर शैशवावस्था तक उत्सव में भाग लेने वाले हर व्यक्ति से हर व्यक्ति को सम्मान व्यक्त करता हुआ शिशु और आशय आकांक्षा सहित आशीषों को प्रस्तुत करने वाले हर व्यक्ति उत्सव में भागीदारी के रूप में देखने को मिलता है। ऐसे उत्सव मानव सहज जागृति परंपरा का ही पुनर्उद्गार ही रहता है। ऐसी जन्मदिनोत्सव को जैसा ही शैशवावस्था से कौमार्य अवस्था आता है अथवा जिस जन्मदिनोत्सव तक अपने मूल्यांकन करने में सक्षम हो जाते हैं, जिसको अभिभावक भले प्रकार से मूल्यांकन कर सकते हैं। इसी जन्मदिवस से हर मानव संतान से अपना मूल्यांकन कराने और सत्यापित करने की विधि अपनाना आवश्यक रहता ही है। ऐसा सत्यापन सहज अभिव्यक्ति की पुष्टि में उत्साह और प्रसन्नता को व्यक्त करने का समारोह बंधु-बांधव और अभिभावक मित्रों के साथ-साथ अनुभव करना बनता है। ऐसी सम्पूर्ण अनुभूति का आधार का मापदण्ड जीवन जागृति, मानवीयतापूर्ण आचरण शैशवावस्था से किया गया आज्ञापालन, सहयोगवादी कार्यकलाप, अनुसरण किया गया कार्यकलाप अर्थात् अभिभावक एवं आचार्यों के साथ किया गया अनुसरण क्रियाकलाप और उसके प्रयोजनों के साथ उन-उनके सभी अभिमत किशोरावस्था से ही व्यक्त होना स्वाभाविक रहता ही है। स्वयंस्फूर्त आशा, आकांक्षा के संदर्भ में भी प्रोत्साहनपूर्वक संप्रेषित करने का अवसर प्रदान करना उत्सव समारोह का एक कर्तव्य के रूप में होना पाया जाता है। मुख्य रूप में जिनका जन्मदिनोत्सव मनाया जाता है उनका उपयोग, सदुपयोग, प्रयोजन सम्बन्धी मूल्यांकन पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान आकर्षित करने का कार्यक्रम