व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
संस्कारोत्सव (धर्म-कर्म, दीक्षा-व्यवहार, उत्पादन संस्कार) विवाहोत्सव मुख्य हैं। नैसर्गिक उत्सव ऋतुकाल के अनुसार मनाने की व्यवस्था है। क्योंकि सम्पूर्ण वनस्पति संसार भी ऋतुकाल के अनुसार उत्सवित होने के स्वरूप में देखा जाता है। यह सर्वविदित तथ्य है।
1. जन्म संस्कार उत्सव - मानव परंपरा में हर माता-पिता संतान प्राप्ति के साथ अपने में गौरव और सम्मान का अनुभव करना और होना पाया जाता है। इसी सम्मान और गौरव के समर्थन में उत्सव का स्वरूप बनता है। उत्सव में उत्साह और प्रसन्नता मूल स्रोत है। किसी उद्देश्य, किसी प्रयोजन, किसी वस्तु प्राप्ति के अर्थ में ही उत्साह-प्रसन्नता का प्रमाण मानव कुल में सफलता के अर्थ को प्रतिपादित करता है। जैसे - एक पति-पत्नी की कोख से संतान प्राप्ति अपने आप में शरीर संबंध का फलन के रूप में होना देखा गया है। हर मानव शरीर और जीव शरीरों की रचना गर्भाशय में ही होना देखा गया है। अत्याधुनिक संसार में भी इसके लिये कई कृत्रिम उपायों को खोजा गया है। सफलता अभी भी विचाराधीन है। कृत्रिम विधि यदि सफल भी होता है तो इसकी सफलता में भी गर्भाशय सहज सटीक वातावरण को कृत्रिम रूप में निर्मित करने के उपरान्त ही सफल होने की व्यवस्था है।
ऐसे कृत्रिम गर्भाशय संरचना वातावरण संबंधी कृत्यों को समान करने के लिये जितना श्रम, जितना वस्तु, जितना समय लगता है, लग सकता है वह सर्वाधिक निरर्थकता अपव्यय के खाते में जायेगा। अस्तित्व में यही सिद्धान्त है जो जिसको अपव्यय करेगा उससे वह वंचित हो जायेगा। कृत्रिम गर्भाशय निर्माण विधि स्वयं अपव्ययता के आधार पर