व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
अभी तक समान रूप में उपयोगी होना पाया जाता है। जैसा आहार वस्तुएं आदिकाल से अभी तक क्षुधानिवृत्ति के उपयोग में प्रयोजित होना प्रमाणित है। आवासीय वस्तुएं आदिकाल से शरीर संरक्षण के अर्थ में उपयोगी रहा है। अभी भी उतना वैसा ही उपयोगी होना देखने को मिलता है। अलंकार वस्तुएं आदिकाल से जैसा शरीर संरक्षण और प्रसाधनों के प्रयोजन में प्रयोजित होता रहा है वैसे आज भी उपयोगी होना देखा जाता है। और आगे जबसे दूरश्रवण, दूरगमन, दूरदर्शन संबंधी वस्तुएं और उपकरणों को उत्पादन कर पाया है इसका उपयोग कान, आँख, पैर के गतियों को सर्वाधिक बढ़ाया हुआ दिखाई पड़ता है। दूरगमन के लिये सर्वप्रथम पैर को उपयोग किया दो पैर वाला आदमी जितना जल्दी चल सकता है, जितना धीरे चलता है आंकलन किया। इसी प्रकार कान से दूर-दूर तक सुनने और आँख से देखने की इच्छा रहा। इन्हीं कारणों से मानव का सतत प्रयास सहअस्तित्व सहज संयोजन कुशलता निपुणता वश इन तीनों विधा में गति आवश्यकीय गति अथवा सर्वाधिक गति संपन्न यंत्र प्रणालियों को मानव ने प्राप्त कर लिया है।
इस प्रकार महत्वाकांक्षा संबंधी वस्तुओं का उपयोग स्पष्ट हुआ। जिस प्रणाली से जिसका जितना गति होना है वह निश्चित रहता ही है। इसी निश्चयतावश मानव उपयोग करने में उत्सुक है। सामान्याकांक्षा सहज वस्तुओं में पहले से ही निश्चयी रहा है। इस प्रकार उत्पादित वस्तुओं में उपयोगिता मूल्य सर्वथा निश्चित रहने के कारण इसकी ध्रुवतावश मूल्यांकन में निश्चयता स्वाभाविक रूप में संपन्न होना पाया जाता है।