व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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उक्त विश्लेषण में श्रम नियोजन पूर्वक स्थापित उपयोगिता मूल्य, कला मूल्य को पहचानना और मूल्यांकित करना जागृत मानव में, से, के लिये आवश्यकता, अपेक्षा और उपलब्धि है :-

  • यह सर्वमानव अपेक्षा होने के तथ्य को इस प्रकार सर्वेक्षण कर सकते हैं कि किसी भी वस्तु को उसके उपयोगिता के आधार पर श्रम मूल्य का मूल्यांकन करना चाहिए या पत्र मुद्रा के आधार पर करना चाहिए ?
  • उपयोगिता को अर्थात् सामान्यकांक्षा, महत्वाकांक्षा संबंधी उपयोगिता को वस्तुओं में पहचाना जा सकता है। कागज को छापकर ढेर करने से क्या पहचाना जा सकता है ?
  • संपूर्ण आवश्यकताएँ वस्तु व उसकी उपयोगिता के आधार पर उपयोगी होता है या ढेर सारे प्रतीक मुद्रा, पत्र मुद्रा से ? इसका उत्तर क्या होगा अपने में, से हर व्यक्ति उत्तर देकर देखे वही सबका उत्तर है। इसीलिये मानव उपयोगिता और सुन्दरता को स्थापित करने में, से, के लिये हर व्यक्ति स्वतंत्र होना मौलिक अधिकार है। इसी आधार पर हर परिवार में समृद्धि की संभावना समीचीन रहता ही है।

हर स्वायत्त मानव व्यवसाय में स्वावलंबी, व्यवहार में सामाजिक होने में पारंगत, कुशल और निपुण रहना पाया जाता है। पारंगत का तात्पर्य परस्पर मानव प्रकृति में जागृत सहज स्वभावों, गुणों, कार्य गति और व्यवहार गति और उसके परिणामों का आंकलन करने और उसका मूल्यांकन करने के अधिकार से इसके प्रयोग विधि से स्वयं प्रतिष्ठित होना पाया जाता है।