व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
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निरंतर उत्साह समाधान और उसकी निरंतरता के आधार पर बहता रहता है। इसीलिये जागृत मानव इसे व्यक्त करने योग्य होता है। यह मौलिक अधिकार का ही मूल रूप है।
- श्रम मूल्य के आधार पर विनिमय-कोष कार्यक्रम परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था का अंगभूत होना; जीवन जागृति पूर्ण विधि का ही अभिव्यक्ति है।
- जीवन जागृति पूर्वक ही श्रम मूल्य का मूल्यांकन हर उत्पादित वस्तुओं का उपयोगिता, कला मूल्य के आधार पर निर्धारित होता है।
- श्रम नियोजन श्रम विनिमय प्रणाली में प्रतीक वस्तुओं या मूल्यों का दखलांदाजी बनाम हस्तक्षेप नहीं होती। दूसरे विधि से इसकी आवश्यकता ही शून्य हो जाती है।
- प्रतीक मुद्रा में भ्रमित मानव का कल्पना भ्रमपूर्वक किया गया सभी निर्णय स्थिर नहीं हो पाते इसीलिये प्रतीक मुद्रा और वस्तु का मूल्य ही अस्थिर हो जाता है।
- प्रतीक मुद्रा के साथ ही अमानवीयता वश द्रोह-विद्रोह, शोषण, तस्करी की घटनाएं हो पाती हैं। प्रतीक वस्तु कोई धातु होना देखा गया प्रतीक मुद्रा, धातु मुद्रा और पत्र मुद्रा के रूप में देखा गया। यह दोनों प्रकार की मुद्रा प्रणाली में स्थिरता निश्चयता सिद्ध नहीं हो पाती इन सब कारणों से मानव कल्पित होना स्पष्ट हो जाता है।
जागृति पूर्वक ही मानव अस्तित्व सहज सहअस्तित्वपूर्ण पद्धति, प्रणाली नीतिपूर्वक नियति सहज प्रमाण होना देखा जाता है। हर मानव में श्रम शक्तियाँ जीवन और शरीर के संयुक्त रूप में नियोजित होना देखा जाता है। संपूर्ण उत्पादन का उद्देश्य महत्वाकांक्षा, सामान्य आकांक्षा की वस्तुओं के स्वरूप में देखा जाता है। उत्पादित हर वस्तु आदिकाल से