व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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अनुभवमूलक प्रणाली से अनुभवगामी प्रणाली सहज आर्वतनशीलता वश ही न्याय सुलभता व तन, मन, धन का सुरक्षा अपने आप में सदुपयोग सहित प्रमाणित हो जाता है। तन, मन, धन का सदुपयोग का तात्पर्य ही है संबंधों का निर्वाह।

तन, मन, धन हर मानव में प्रमाणित वैभव सहज तथ्य है। हर जागृत मानव, जागृत परिवार मानव सहज रूप में अर्थ का सदुपयोग और सुरक्षा करने में समर्थ रहता ही है यह समर्थता ही मौलिक अधिकार के रूप में ज्ञात होता है। संपूर्ण मौलिक अधिकार जागृति के सहित प्रमाण के रूप में देखने को मिलता है। ऐसी जागृति शिक्षा-संस्कार विधि से ही सम्पन्न होना स्पष्ट है। संपूर्ण प्रकार के अभ्यास भी प्रकारान्तर से समझने का अथवा समझदारी में परिपूर्णता संपन्न होने का क्रियाकलाप है। परिपूर्णता का परीक्षण मानव के हर कार्य-व्यवहार, विचारों में स्पष्टतया मूल्यांकित होता है। इसे प्रत्येक मानव अपने ही क्रियाकलापों-विचारों के निरीक्षण विधि से स्पष्ट करता है। यथा किया गया परिणाम, सोचा गया की दिशा स्वयं में ही स्पष्ट होना देखा गया है। यही विश्लेषण का तात्पर्य है। यह वैभव अथवा महिमा हर मानव में प्रचलित रूप में संपन्न होता हुआ प्रमाणित होता है। इसका मूल कारण जीवन ही दृष्टा पद प्रतिष्ठा संपन्न रहना है। प्रत्येक मानव जीवन सहित ही मानव संज्ञा में, से संबोधित है।

दृष्टा पद का प्रमाण ही है जानना, मानना, पहचानना, निर्वाह करना; यह हर मानव में स्वीकृत है, अपेक्षित है। यह जागृति पूर्वक सफल होता है। अतएव मानव दृष्टा पद जागृति प्रतिष्ठावश ही निरीक्षण, परीक्षण, सर्वेक्षण कार्य संपन्न करता