व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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6. व्यवस्था संबंध :- व्यवस्था में जीने का प्रमाण परिवार में होता है। समग्र व्यवस्था में भागीदारी सहज क्रम में व्यवस्था संबंध को पहचानने की आवश्यकता उत्पन्न होती है। जैसा परिवार में न्याय-सुरक्षा का प्रमाण संबंध, मूल्य, मूल्यांकन तन, मन, धन का सदुपयोग-सुरक्षा विधि से प्रमाणित हो जाता है। यही परिवार मानव का मानवीयतापूर्ण परिवार का परिभाषा है। इसीलिये परिवार में परस्पर हुई पिता-पुत्र, भाई-बहन, मित्र, गुरू, शिष्य, पति-पत्नी, माता-पिता इन संबंधों में संबोधन सहज संबध चिन्हित होता है और उत्पादन-कार्य में भागीदारी प्रमाणित रहता ही है। हर परिवार में वस्तुओं का उपयोग, सदुपयोग भी साक्षित रहता है। विनिमय-कार्य के लिये और विशाल संबंध की आवश्यकता बनी रहती है। एक परिवार की आवश्यकता जितने प्रकार की वस्तुओं की बना रहता है उनमें से कुछ वस्तुओं को किसी भी परिवार में उत्पादित होना स्वाभाविक है विनिमयपूर्वक एक परिवार में उत्पन्न वस्तु को दूसरे परिवार प्राप्त कर लेना ही वस्तुओं का आदान-प्रदान का तात्पर्य है। इस विधि से विनिमय एक आवश्यकीय क्रियाकलाप है; यह स्पष्ट हो जाता है। व्यवस्था के आयामों में विनिमय एक आयाम है। व्यवस्था रूप में ही संपूर्ण आयाम सहित परंपरा स्पष्ट होती है यथा मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार परंपरा अन्य सभी चार आयामों के लिये स्त्रोत और संतुलन सूत्र होना पाया जाता है। प्रत्येक आयाम में मानव अपने संतुलन पूर्वक कार्य-व्यवहार करने के क्रम में हर सूत्र व्याख्यायित हो जाता है। यथा मानवीय शिक्षा-संस्कार में ये देखने को मिलता है कि यथार्थता, वास्तविकता, सत्यता रूप में समझा हुआ को संस्कारों के रूप में; किया हुआ को प्रमाणों के रूप में दूसरी भाषा में जिया हुआ को अथवा जीने की विधि को प्रमाण के रूप में देखा