व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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स्वाभाविक क्रिया है। यह क्रिया विधि भी मानव में एकता का सूत्र को विशालता की ओर गतित होता है।

विवाह संबंध के साथ-साथ स्वाभाविक रूप में रोटी की एकता अपने आप स्पष्ट होती है। इसकी परम आवश्यकता है। हर मानवीयता पूर्ण परिवार में हर जागृत मानव परिवार सहज भोज में भागीदार होना अतिथि के रूप में स्वीकार्य जागृत मानव परंपरा में कोई व्यक्ति बिना आमंत्रित अथवा बिना प्रयोजन के किसी के परिवार में जाने की आवश्यकता ही नहीं रह जाता है। हर मानव परिवार विधि से आमंत्रित अथवा संयोजित रहना बन पाता है और सभा विधि से संयोजित और प्रयोजित कार्यार्थ ही एक दूसरे के अतिथि होना पाया जाता है। अतिथि का तात्पर्य ही आमंत्रणपूर्वक सहभोज करना। इस प्रकार से रोटी और बेटी का संबंध विशालता क्रम में सार्थक होना दिखाई पड़ता है। यह सार्थकता परिवार मानव विधि से और व्यवस्था मानव विधि से सम्पन्न होना जागृत परंपरा सहज मानव में, से, के लिये एक शिष्टता पूर्ण गति है। इस प्रकार धर्म, राज्य व्यवस्था सभा और परिवार विधि से व्यवस्था के रूप में संबंधित होने जिसके व्यवहारान्वयन क्रम में रोटी और बेटी का एकरूपता अथवा विशालता अपने आप स्पष्ट हो चुका है। अतएव जागृत मानव परंपरा में उक्त चारों विधाओं में अर्थात् रोटी, बेटी में एकता और राज्य और धर्म में एकता का अनुभव होना हर व्यक्ति के लिये आवश्यक है। इसका अभिव्यक्ति हर मानव का, मानव परिवार का मौलिक अधिकार है। इन्हीं मौलिक अधिकारों को प्रमाणित करने के क्रम में ही सभी मानव अपने आप को इन चारों विधाओं में स्वयंस्फूर्त विधि से अर्थात् जागृति पूर्वक गतिशील होने मानव सहज प्रवृत्ति है।