व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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विवाहोत्सव की अभिव्यक्ति में एक आयाम संबंधों को पहचानने, मूल्यों को निर्वाह करने (परिवार सहज सभी संबंध) मूल्यांकन करने (उभय तृप्ति के लिये) में अपने पूर्णता और निष्ठा को सत्यापित करना है। तन, मन, धन रूपी अर्थ का सदुपयोग, सुरक्षा करने में अपने परिपूर्णता की घोषणा और सुरक्षा करने में निष्ठा को सत्यापित करना विवाहोत्सव में एक आवश्यकता है। परिवार सहज संपूर्ण मर्यादा यथा सर्वतोमुखी समाधान और समृद्धि को बनाये रखने में अपने निष्ठा को सत्यापित करना विवाहोत्सव में एक आवश्यकीय आयाम है। मानवीयतापूर्ण चरित्र में स्वयं को पारंगत होने उसमें निष्ठा को सत्यापित करना विवाहोत्सव का एक आयाम है।

विवाह संबंध स्वाभाविक रूप में विभिन्न परिवारों में से अर्पित मानव संतान के साथ घटित होना स्वाभाविक है। यह भी मानव परंपरा में एकता का एक आयाम है। मानव परंपरा में एकता का चार आधार देखने को मिलता है। राज्य, धर्म, रोटी, बेटी, बेटा का संबंध में स्वीकृति ही मानव में एकता का संपूर्ण स्वरूप है।

राज्य और धर्म अविभाज्य रूप में वर्तमान होना देखा गया है। स्वराज्य को मानव सहज मानवत्व केन्द्रित व्यवस्था के रूप में पहचाना गया। मानवत्व अपने आप में मानव का परिभाषा, आचरणों में जीवन जागृतिपूर्वक प्रमाणित होना देखा गया है। इसके मूल में अर्थात् जागृति के मूल में जीवन ही दृष्टा, कर्ता, भोक्ता रूप में होना पूर्णतया देखा गया, इसी कारणवश मानव अपने परिभाषा के रूप में, आचरण के रूप में होने के फलस्वरूप व्यवस्था एवं समग्र व्यवस्था में भागीदारी का कार्यकलाप परंपरा के रूप में सदा-सदा के लिये