व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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अर्हिनिशी समझने, सोचने, करने, कराने के लिये मत देने के लिये संकल्प किया जाता है। विवाहोत्सव में भागीदारी निर्वाह करता हुआ हर व्यक्ति दांपत्य जीवन सफल होने की कामना सहित सम्मतियों को व्यक्त करने के रूप में प्रस्तुत होना सहज होता है। दाम्पत्य संबंध में सत्यापित व्यक्ति से कम अवस्था वाले जो भागीदारी निर्वाह किये रहते हैं वे सब नव दंपतियों के जीने की कला, विचार शैली और अनुभवों से सदा-सदा प्रेरणा पाने के लिये कामना व्यक्त करने के रूप में उत्सव में भागीदारी को निर्वाह करना सहज है। इस प्रकार उत्सव में सम्मिलित सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों की भागीदारी अपने आप स्पष्ट होती है। यही विवाहोत्सव का तात्पर्य है।

मानव सहज जागृति प्रभाव विशालता की ओर गतिशील होना स्वाभाविक है। जैसा मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार एक परिवार में परिवार का विरासत न होकर सम्पूर्ण विश्व मानव का स्वत्व होना पाया जाता है। इसीलिये मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार सार्वभौम होना सहज है। इसी प्रकार न्याय-सुरक्षा, उत्पादन-कार्य, विनिमय-कोष, स्वास्थ्य-संयम क्रियाकलाप भी सार्वभौम होता ही है। इन पाँचों आयाम का सार्वभौम रूप में वर्तमान होना ही अखण्ड समाज, सार्वभौम व्यवस्था का द्योतक है। दाम्पत्य संबंध ऐसी व्यवस्था में भागीदारी का संकल्पोत्सव होना पाया जाता है, ऐसे संकल्प का प्रमाण समाधान और समृद्धि का स्वरूप ही है। यही परिवार मानव का लक्ष्य और आवश्यकता है।

सतर्कता सहज विधि से शिष्टतापूर्ण भाषा शैली, कार्यों को करने में दक्षता की घोषणा और स्वीकृतियाँ विवाहोत्सव में व्यक्त करने का, सत्यापित करने का कार्यक्रम है।