व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

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होना समीचीन है। मानव जागृति भी समीचीन तथ्यों में, से, के लिये होना स्पष्ट है। इसी विधि से व्यवस्था, धर्म और राज्य का संयुक्त स्वरूप होना स्पष्ट है; क्योंकि व्यवस्था में भागीदारी क्रम में परिवार और व्यवस्था समाहित रहता ही है। परिवार विधि से विश्व परिवार तक समाज रचना स्वरूप, परिवार सभा व्यवस्था से विश्व परिवार सभा तक सभा रचना का होना सहज है। सभा और परिवार रचना का सार्थकता, आवश्यकता और प्रमाण केवल व्यवस्था ही है। इसको ऐसा भी कहा जा सकता है परिवार सहज रूप में भी व्यवस्था है। सभा सहज रूप में भी व्यवस्था प्रमाणित होता है। तीसरे विधि से हर परिवार व्यवस्था अपेक्षा और आवश्यकता से संपृक्त रहता है। हर सभा व्यवस्था और व्यवस्था में भागीदारी का प्रमाणों को प्रस्तुत करना चाहता है। इस प्रकार सभा, परिवार-सभा व्यवस्था केन्द्रित होना अथवा व्यवस्था लक्षित होना पाया जाता है। इस प्रकार सभा ही परिवार, परिवार ही सभा के रूप में होना पाया जाता है। इन्हीं में भागीदारी क्रम में संपूर्ण संबंधों का विषद व्याख्या पहले हो चुका है। परिवार संबंधों में से एक संबंध के रूप में विवाह संबंध भी सफल होना अति आवश्यक है। यह हर परिवार मानव निर्वाह करता है और परिवार मानव के रूप में प्रमाणित होने के लिए स्वायत्त मानव के रूप में मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार विधि से संपन्न होना देखा गया है। अतएव विवाह संबंध परिवार के रूप में प्रमाणित होना मौलिक आधार व अधिकार का एक आयाम है। जैसा अन्य संबंधों का निर्वाह भी मौलिक अधिकार के रूप में व्याख्यायित होता है। इस प्रकार हर विवाह संबंध मानवीयतापूर्ण परिवार के साथ आयोजित होना एक