व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
सदुपयोगी विधि से प्रयोजित हो पाता है। अतएव मानव परंपरा में विवाहोत्सव समय में लेन-देन की प्रतिज्ञा-प्रतिबद्धता की आवश्यकता नहीं है।
मानवीयतापूर्ण मानव परंपरा में इस बात की भी कल्पना किया जा सकता है कि स्वास्थ्य इसका एक आयाम होने के कारण, दूसरा हर गति मार्ग यान-वाहनों के प्रति जन जागरण पर्याप्त रहना स्वाभाविक है। इन आधारों पर यही परिणाम अपेक्षित है कि दुर्घटनाएँ न्यूनतम होगी। अल्पायु और मध्यायु में शरीर विरचना घटना न्यूनतम होगी। यह अपेक्षित रहते हुए भी कोई ऐसी घटना घटित हो जाए उस समय क्या किया जाय? इसका सहज उत्तर है जिस आयु सीमा के पुरुष का वियोग हो गया हो अथवा स्त्री का वियोग हो गया हो ऐसी स्थिति में तीन वर्ष के अन्तराल में आयु वर्ग को पहचानते हुए एक स्त्री को एक पुरुष की आवश्यकता और एक पुरूष को एक स्त्री की आवश्यकता रूपी मानसिकता और प्रवृत्ति को पहचानते हुए उनके अभिभावक, प्रौढ़-आचार्य, मित्र, भाई-बहन, स्थानीय व्यवस्था के कर्णधारों का प्रयास संयोजन विधियों से पुन: विवाह संबंध को स्थापित कर लेना मानव परंपरा के लिए उचित होगा।
वक्तव्य - मानवीयतापूर्ण अर्थात् मानव चेतना सम्पन्न मानव परंपरा में समानाधिकार सम्पन्न दाम्पत्य संबंध में संबंध, मूल्य, मूल्यांकन, उभय तृप्ति और उसकी निरंतरता स्वाभाविक है। अतएव इसमें मतभेद का आधार ही नहीं रह गया।
स्वधन :- प्रतिफल, पारितोष और पुरस्कार से प्राप्त धन।