व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
यात्रा का विफल होना भी जनसंख्या वृद्धि का कारण है। इसी के साथ साथ जीव कोटि के शरीरों की संख्या का घटना भी एक कारण है। क्योंकि इस धरती पर जितने जीवन जीवनी क्रम में और जागृति क्रम और जागृति में प्रमाणित होने के लिये नियतिविहित नियंत्रण रहता ही है। उसमें से मानव परंपरा में केवल जागृति क्रम परंपरा के स्थिति में ही बारम्बार शरीर यात्रा की स्थिति बनी हुई है। इन आधारों पर स्पष्ट हो जाता है जागृतिपूर्वक ही मानव परंपरा का जनसंख्या नियंत्रण हो पाता है। जागृति परंपरा के उपरान्त स्वाभाविक रूप में हर जीवन जागृत होने के लिये योग्य परंपरा बना रहता है। इसलिये हर जीवन जागृत होना सहज संभव हो जाता है। जीवन जागृति के उपरान्त शरीर यात्रा की आवश्यकता नहीं रहती है या न्यूनतम हो जाती है। जागृति की अर्हता, अपेक्षा, संभावना स्त्री-पुरूषों के लिये समान रूप में विद्यमान है। इसीलिये इनमें समानता की परंपरा और उपलब्धि होती है।
- मानव जागृतिपूर्वक ही सामाजिक होता है।
- मानव जागृतिपूर्वक सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी का निर्वाह करता है।
- मानव ही जागृतिपूर्वक सम्पूर्ण भ्रम से मुक्त होता है।
- मानव जागृतिपूर्वक ही ‘भ्रम ही बंधन का कारण होना’ समझ पाता है।
संतुलन
जागृत शिक्षा-संस्कार विधि से प्रत्येक मानव जागृत होना पाया जाता है। शिक्षा ग्रहण करने की अर्हता सम्पूर्ण मानव