व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
सर्वेक्षण से पता लगता है यह सर्वमानव का सर्वकालिक वांछा है। इसके आधार पर मानव अपने नियति सहज कार्यक्रमों को पहचान पाता है जब जागृत परंपरा इस धरती पर सर्वसुलभ हो जाए।
जागृत मानव ही उभय प्रकार के संतुलन के लिए दायी होता है और सटीकता से निर्वाह भी होता है। ऐसी ऐश्वर्यमयी अभ्युदय रूपी नित्य वर्तमान में, से, के लिये मानवीय पूर्ण संविधान अध्ययन और आचरण का वस्तु है।
नित्य शुभ और नित्य शुभ संभावना सर्वमानव में, से, के लिये नित्य समीचीन एवं समान है।
यह मानवीय आचरण रूपी संविधान जीवन ज्ञान, अस्तित्व दर्शन सम्मत विधि से पाये गये हैं। मानव अस्तित्व में अविभाज्य है। प्रत्येक मानव जीवन और शरीर का संयुक्त रूप है। तृप्तियाँ जीवन से संबंधित और मानव तृप्ति वर्तमान में विश्वास होने के आधार पर प्रमाणित होता है। यह प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता और अपेक्षा है। वर्तमान में विश्वास सम्पन्न होने के लिए सहअस्तित्व, समृद्धि और समाधान साक्षित होना पाया जाता है। यह धरती स्वस्थ रहने की स्थिति में और मानव परंपरा जागृत रहने की स्थिति में ऐसा सर्वशुभ हर व्यक्ति में, से, के लिये सफल होना सहज है।
- सर्वमानव सार्वभौम शुभ को चाहते हैं।
चाहने-होने के मध्य में मानव मानवीयतापूर्ण विधि से आचरण करना ही एकमात्र विधि है। यही संविधान है।