व्यवहारवादी समाजशास्त्र

by A Nagraj

Back to Books
Page 114

अध्याय - 6

मौलिक अधिकार

1.1 मानवीयता सहज जागृति व जागृतिपूर्ण अखण्ड समाज –

सार्वभौम व्यवस्थापूर्वक परंपरा के रूप में अर्थात् पीढ़ी से पीढ़ी के रूप में निरंतरता को प्रमाणित करता है। यह करना, कराना एवं करने के लिये मत देना मानव में, से, के लिये मौलिक विधान है।

व्याख्या - यह अभिव्यक्ति, संप्रेषणा, प्रकाशन बीज रूप में हर परिवार में प्रमाणित होना स्वाभाविक है। परिवार में हर सदस्य स्वायत्त होना ही उनके वयस्कता का प्रमाण है। ऐसे प्रमाण सम्पन्न परिवार के रूप में स्थिति परस्परता में ही संबंधों का पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन और उभय तृप्ति जिसका नाम विश्वास है, प्रमाणित होती है एवं निरन्तरता बनी रहती है। और परिवार सहज आवश्यकता के आधार पर अपनाया/स्वीकारा गया उत्पादन कार्य में एक-दूसरे के लिये पूरक होते हैं। यह समृद्धि का स्रोत होना पाया जाता है। यह प्रत्येक परिवार में, से, के लिये संभावी है। समृद्धि का अनुभव सामान्य आकांक्षा संबंधी वस्तुओं से होना पाया जाता है। महत्वाकांक्षा संबंधी वस्तुएं समृद्धि के लिये सहायक हैं।

इस विधि से हर परिवार सहज संबंधों में विश्वास, समाधान और समृद्धि प्रमाणित होना ही ‘मानवीयतापूर्ण’ परिवार संज्ञा है। यह पीढ़ी से पीढ़ी में स्वीकार पूर्वक प्रवाहित होती है क्योंकि हर मानव संतान न्याय का याचक, सही कार्य-व्यवहार