व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
में विद्यमान है। जीवन अनेक बार अथवा मानव बारंबार, मानव परंपरा में जागृत होने का प्रयत्न करता है। इसे हम सब देखे हुए हैं। मानवीयतापूर्ण शिक्षा-संस्कार उपलब्ध होने के उपरान्त ही हर मानव में, से, के लिये संतुलन एक नित्य उत्सव का आधार बिन्दु है। संतुलन का मूल रूप सम्पूर्ण मानव में संतुलन, अखंड समाज, सार्वभौम व्यवस्था में भागीदारी करता हुआ दसों सीढ़ियों में परस्पर पूरकता पूर्वक मानव सहज जीने की कला को प्रमाणित करने के रूप में है। ऐसे संतुलन का स्वरूप -
- शिक्षा-संस्कार-व्यवस्था और संविधान में सामरस्यता
- मानवीय संस्कृति, सभ्यता, विधि, व्यवस्था में सामरस्यता
- मानवीय व्यवस्था सहज पाँचों आयामों में सामरस्यता
- संबंध-मूल्य-मूल्यांकन और उभयतृप्ति में सामरस्यता
- नैसर्गिक संबंध और मानवीयतापूर्ण विधि से जीने की कला में सामरस्यता
- दसों सीढ़ियों में परस्पर उपयोगिता, पूरकता और सामरस्यता
- व्यवसाय, व्यवहार, विचार और अनुभव में सामरस्यता
यही संतुलन का प्रमाण है।
मानव और नैसर्गिकता में पूरकता ही आगे और उसके आगे आने वाली पीढ़ी में व्यवस्था में जीने की आवश्यकता, सम्भावना और प्रयोजनों को हृदयंगम करने की परम आवश्यकता है। नियति सहज संतुलन को बनाए रखना ही वर्तमान में विश्वास, दूसरी भाषा में सहअस्तित्व, अभय, समृद्धि और समाधान है। यह सर्वमानव की वांछा भी है।