व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
‘मंडल’ परिवार सभा, 7. ‘मंडल समूह’ परिवार सभा, 8. ‘मुख्य राज्य’ परिवार सभा, 9. ‘प्रधान राज्य’ परिवार सभा और 10. ‘विश्व राज्य’।
परिवार सभा अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था की दस सीढ़ी हैं। सभी सीढ़ियाँ एक दूसरे के पूरक हैं और अविभाज्य हैं। अविभाज्यता का तात्पर्य इन दस सीढ़ियों में से किसी को अलग करना, अलग रखना, अलग सोचना ही संभव नहीं है। सकारात्मक विधि से अविभाज्यता का तात्पर्य प्रत्येक सीढ़ी दूसरे सीढ़ी के लिए अनुप्राणन सूत्र है।
अधिकार :- मानवीयतापूर्ण आचरण करना, कराना एवं करने के लिये मत देना प्रत्येक मानव का मौलिक अधिकार है। मानवीयतापूर्ण आचरण मूल्य, चरित्र और नैतिकता का अविभाज्य स्वरूप है। ‘मानव’ शब्द से प्रत्येक/सम्पूर्ण नर-नारी सम्बोधित हैं।
मानव में समानता
समानता का स्वरूप आवश्यकता, संभावना और सार्थकता के संबंध में यह समझा गया है कि मानव अपने परंपरा के रूप में नर-नारियों के संयुक्त विधि से प्रमाणित होना सर्वविदित है। मानव परंपरा और उसकी निरंतरता के लिये नर-नारियों का होना सहअस्तित्व सहज अभिव्यक्ति है। ऐसा वैभव जीवावस्था और प्राणावस्था में भी दृष्टव्य है। मानव परंपरा में एवं जीव परंपरा में भी जीवन का समानता होना पाया जाता है। जीवन अपने स्वीकृतिपूर्वक स्त्री या पुरूष शरीर को चलाता है। जीवन के रूप में न तो स्त्री होते हैं न पुरूष होते हैं। जीवन सदा ही जागृति का प्यासा है। इसे प्रमाणित करने के लिये सदा सदा ही प्रवृत्ति बनी ही रहती है। बारम्बार शरीर