व्यवहारवादी समाजशास्त्र
by A Nagraj
अध्याय - 5
मानवीय संविधान का धारक-वाहकता
जागृतिपूर्ण सभी मानव इस संविधान के धारक वाहक हैं। प्रत्येक मानव जागृति में, से, के लिये मानव पंरपरा के रूप में प्रस्तुत हैं। इसीलिए जागृत हैं या जागृत होने योग्य हैं। प्रत्येक जागृत मानव मानवीय शिक्षा-संस्कार पूर्वक स्वतंत्रता और स्वराज्य का धारक-वाहक और प्रेरक है। इसलिए प्रत्येक मानव शिक्षा-संस्कारपूर्वक जागृत होता है।
‘मानवत्व’ ही मानव परंपरा में स्वत्व, स्वतंत्रता और अधिकार के रूप में नित्य प्रमाणित है। ‘मानवत्व’ प्रत्येक स्त्री, पुरूष में समान होता है।
स्वत्व :- जागृति ही मानव का ‘स्वत्व’ है। सम्पूर्ण अस्तित्व दर्शन, जीवन ज्ञान और मानवीयतापूर्ण आचरण में परिपूर्णता ही जागृति है। जागृति सहज स्थिति सुख, शांति, संतोष और आनंद की सहज निरंतरता है। जागृति सहज गति समाधान, समृद्धि, अभय और सहअस्तित्व ही है। स्थिति और गति अविभाज्य है।
स्वतंत्रता :- प्रत्येक मानव अखण्ड समाज सार्वभौम व्यवस्था (मानव धर्म) में भागीदारी निर्वाह करने, कराने एवं करने के लिये मत देने में स्वतंत्र है। अखण्ड समाज और सार्वभौम व्यवस्था की अक्षुण्णता मानवीय शिक्षा-संस्कार, स्वास्थ्य-संयम, न्याय-सुरक्षा, उत्पादन-कार्य, विनिमय-कोष, सुलभता सहित है जिसका क्रियान्वयन दस सीढ़ी में होता है। 1. ‘परिवार’ सभा, 2. ‘परिवार समूह’ सभा, 3. ‘ग्राम परिवार’ सभा, 4. ‘ग्राम समूह’ परिवार सभा, 5. ‘ग्राम क्षेत्र’ परिवार सभा, 6.