व्यवहार दर्शन* (Raw)
by A Nagraj
श्र सुख एवं दु:ख वैयक्तिक, कौटुंबिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार-नीति पर ही आधारित है ।
श्र मानव में व्यवहार नीति के निर्वाह के लिये छ: दृष्टियाँ पूर्व में वर्णित की गई हैं, जिनमें से मानवीय दृष्टि सम्पन्न व्यवहार से ही एक से अनेक तक सुखी है ।
श्र भ्रमित मानव कर्म करते समय स्वतंत्र और फल भोगते समय परतंत्र होने के कारण ही अमानवीय दृष्टि से भय व प्रलोभन पूर्वक व्यवहार कार्य करता है, फलत: दु:ख भोगता है और स्वयं के जागृति को अवरुद्ध करता है ।
श्र मानव इस सृष्टि मेें सर्वोच्च विकसित, जागृतिशील व जागृत रूप में प्रमाणित होने योग्य इकाई है । इसीलिये मानव में तीनों इतर सृष्टि यथा पदार्थावस्था, प्राणावस्था एवं जीवावस्था के गुण, स्वभाव एवं धर्म समाविष्ट रहते ही हैं ।
श्र मानव ने बौद्धिक समाधान तथा भौतिक समृद्धि द्वारा सुखी होने की कामना की है ।
श्र भौतिक समृद्धि वैज्ञानिक नियमों के अध्ययन और तदनुसार कर्माभ्यास से ही संभव है तथा बौद्धिक समाधान विवेकपूर्ण नियमोें के अध्ययन एवं तदनुसार नियंत्रण से ही संभव है ।
श्र स्वस्थ व्यवहार के लिए स्वस्थ शरीर का भी महत्वपूर्ण स्थान है, जो प्राण के विधिवत् नियन्त्रण से ही संभव है ।
श्र अन्न से प्राण-पोषण, व्यवसाय से समृद्धि, संयम से अपव्यय का निरोध, वैज्ञानिक समझ से भौतिक दर्शन, विवेकात्मक समझ से बौद्धिक दर्शन, व्यवहारिक समझ से समाज दर्शन, अर्थशास्त्र की समझ से व्यवस्था का दर्शन तथा पूर्ण समाधान से व्यापकता में अनुभूति एवं दर्शन है ।
श्र प्राण एक वायु विशेष है, जिससे हृदय क्रिया के लिये प्रेरणा पाता है । वायु एक से अधिक विरल पदार्थों के उत्सव अथवा संघर्ष से उत्पन्न, वेग व तरंग सहित पदार्थ-राशि है । प्राण के पाँच भेद हैंं ः- (1) प्राण, (2) अपान, (3) व्यान, (4) उदान और (5) समान ।
श्र प्राणवायु शरीर व प्राणकोशा के लिये प्रेरणापूर्वक बल-पोषक, अपान वायु अनावश्यक व बल-शोषक, व्यान वायु शरीर के लिये उपयोगात्मक, उदानवायु शरीरके लिये संचालनात्मक तथा समानवायु शरीर के लिये विकासात्मक है । इन पाँचों वायु का संतुलन संबंधित चैतन्य इकाई के विचार, आहार, विहार व व्यवहार की रीति, नीति एवं परिस्थिति पर निर्भर करता है ।
श्र अन्न-आहार एवं औषधि के रूप में है ।
:: आहार ः- ग्रहण कर लेने योग्य तत्व जिसमें हों, उसकी ‘आहार’ संज्ञा है ।
:: औषधि ः- शारीरिक व मानसिक विकृति (रोग) के निराकरण (उपचार) हेतु प्रयुक्त पदार्थ की ‘औषधि’ संज्ञा है ।