व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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★ रूप, गुण परिवर्तनशील है, जबकि तत्व शाश्वतवादी है क्योंकि तत्व चारों अवस्थाओं में पाया जाता है । सभी वृहत इकाईयों के गठन का मूल तत्व परमाणु है । सभी तत्वों के परमाणु का गठन सिद्धांत समान है । परमाणु का गठन भी मध्यांश तथा आश्रित अंशों से है । परमाणु में समाहित अंशों की सक्रियता एवं विकास क्रम भेद से ही सभी अवस्थाएँ हैंं ।

श्र अध्ययन ही उपासना है । प्रमाणित मानव ही अध्यापक है जिनके सान्निध्य में ही अध्ययन है । अध्ययनपूर्वक समझदारी से तदाकार तद्रूपता पूर्वक स्वत्व, स्वतंत्रता अधिकार होता है ।

:: अध्यापक ः- अनुभव मूलक विधि से अनुभव गामी पद्धति पूर्वक सहअस्तित्व रूपी सत्य बोध कराने वाला ।

श्र प्रयोेग से उपयोगी साधनों की पहचान होता है ।

श्र उत्पादन से उपयोगी सामग्रियोें की उपलब्धि एवं विपुलीकरण होता है ।

श्र अभ्यास से कुशलता-निपुणता-पाण्डित्य में पारंगत होना प्रमाणित होता है ।

श्र निष्ठा से न्याय, धर्म एवं सत्य के प्रकाश में मानव लक्ष्य के लिये अध्ययन होता है । निष्ठा के फलस्वरूप अनुभूति होता है । अनुभूति मात्र सत्य में है । सहअस्तित्व रुपी परम सत्य में अनुभूति ही जीवन में भ्रम मुक्ति है ।

श्र व्यापक सत्ता पारगामी-पारदर्शी रूप में और देवी-देवताएँ अनेक हैंं ।

:: ईष्ट ः- निर्भ्रमता पूर्वक श्रद्धा, विश्वास सहित श्रेष्ठता का पहचान होना सहअस्तित्व में ईष्ट है ।

श्र जागृति रुपी ईष्ट में निष्ठा की निरंतरता से ही अनुभूति है ।

श्र जीवन तत्व अमरत्ववादी है, इसीलिये नित्य सत्ता सहज अनुभव करने योग्य योग्यता को प्रमाणित करने का अवसर हर मानव इकाई में है ।

श्र दूसरे के अस्तित्व के बिना जिसका अस्तित्व सिद्ध न होता हो उसको सापेक्ष की संज्ञा है ।

श्र असंग्रह से निर्बीज प्रवृत्ति का प्रसव है, जिसका फल प्रमाण सर्वतोमुखी समाधान से समझदारी एवं समृद्धि श्रम से प्रकट होता है ।

श्र असंग्रहः- व्यय के लिये की गई आय की असंग्रह संज्ञा है तथा इसका सद्व्यय अनिवार्य है । यह स्वधन विधि से सार्थक है ।

श्र अकर्तृत्व व अकर्मणात्व के निश्चय से ही असंग्रह होता है ।

:: अकर्तृत्व ः- जो नहीं करना चाहिए उसे न करते हुए विधि विहित क्रियाकलापों को अपनाना ही अनावश्यक कार्यों से मुक्ति है । यही अकर्तृत्व हैं । भ्रमवश किये जाने वाले जितने भी क्रियाकलाप हैं, यही बंधन हैं, क्लेश कारी हैंं । इसका निराकरण अनुभव सहज जागृति पूर्वक किये