व्यवहार दर्शन* (Raw)

by A Nagraj

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श्र भ्रमवश सुविधा-संग्रह प्राप्ति के लिए की गई प्रारंभिक तैयारी ही प्रलोभन है । सार्थक प्राप्ति के सम्भावनात्मक विचारों की आशय, जिसकी उपलब्धि के बिना तृप्ति सम्भव न हो उसे आवश्यकता संज्ञा है ।

श्र अधिष्ठान (आत्मा) एवं अनुभव की साक्षी में स्मरणपूर्वक किए गए क्रिया, प्रक्रिया एवं प्रयास को अध्ययन संज्ञा है जो जितने पात्रता से सम्पन्न है, वह उसकी अर्हता, अर्हता द्वारा की गयी रीति को दृष्टि और दृष्टि द्वारा प्राप्त प्रतिबिंबन क्रिया की दर्शन संज्ञा है ।

क्रिया मात्र ही दृश्य है जिसकी लोक संज्ञा है । दृश्य का दर्शन तथा अदृश्य (व्यापकता) सहज अनुभव प्रसिद्ध है ।

श्र सहअस्तित्व ही सम्पूर्ण दृश्य है ।

श्र व्यापक वस्तु में सम्पृक्त जड़-चैतन्य प्रकृति सहज अनुभव ही ज्ञानावस्था की इकाई के पूर्ण जागृति का द्योतक है ।

श्र लोक तृष्णा से त्रस्त एवम् इसमें व्यस्त समस्त प्रयत्नों में मानव को श्रम की पीड़ा ही है । इसीलिये मानव ने श्रम की पीड़ा से मुक्त होने का यत्न भी किया है, जो मानव की क्षमता, योग्यता एवम् पात्रता के अनुसार सफल अथवा असफल हुआ है ।

श्र मानव ने अमानवीयता की समीक्षा तथा मानवीयता और अतिमानवीयता का अध्ययन करने का प्रयास किया है । उपरोक्त तीनों दृष्टि, स्वभाव एवम् विषय का वर्णन पूर्व में किया जा चुका है ।

श्र शून्य (व्यापक) ही ज्ञान है । व्यापक ही सत्ता है । व्यापक सत्ता में सम्पृक्त प्रकृति सहज आचरण ही नियम है जिसको अस्तित्व में पाया जाता है ।

ज्ञ हर क्रिया नियम से नियन्त्रित है ।

श्र विषयी, विषय तथा विषय-वस्तु यह तीनों क्रियाएँ हैं ।

श्र जड़ क्रिया को पाकर किए गए श्रम से, विश्राम की प्रतीक्षा एवम् प्रयास मानव ने किया है, जो असफल सिद्ध हुआ है । इसके साथ ही व्यवहारिक एवम् वैचारिक एक-सूत्रता पूर्वक सहअस्तित्व भी सिद्ध हुआ है, जो नियम एवम् व्यापकता सहज महिमा है ।

श्र समस्त क्रियाएं सत्ता में नियन्त्रित तथा संरक्षित है । क्योंकि इकाई और इकाई के बीच सत्ता का अभाव नहीं है । इसलिये सत्ता ही नियम एवम् नियंत्रण का कारण सिद्ध हुआ है । इसी के भास, आभास प्रतीति एवम् अनुभूति के योग्य क्षमता, योग्यता एवम् पात्रता से सम्पन्न होने के लिए ही मानव ने अनवरत प्रयास विभिन्न स्तरों पर किया है, कर रहा है और करता रहेगा ।

श्र उक्त प्रयास के मूल में क्षमता; क्षमता के मूल में अध्ययन; अध्ययन के मूल में पात्रता; पात्रता के मूल में योग्यता; योग्यता के मूल में शास्त्राभ्यास, व्यवहाराभ्यास, कर्माभ्यास; अभ्यास के मूल